शनिवार, 8 अक्टूबर 2016

सभी कर्म को जिताने वाला 1 यन्त्रराज


राम राम भाइयो मे ता0सुदीप आज आपको महामाया यन्त्र राज के बारे मे बताने जा रहा हो जिसको सिर्फ 1 प्रोयग कर सफल किया जासकता है  और बुद्धि अनुसार प्रोयग करने पर कोई भी आपको परास्त नही कर पाये गा ऐसा मेरे द्वारा निर्माण कर लोगो ने पहन खुद कई अचम्भव बाते बताइ ह मे कुश हो की मेरे द्वारा दिए गए लोगो के काम  पूरा हो रहा ह इसलिये जनहित के लिए पूरे विधि विधान द्वारा आप को दे रहा हो इसलिए इसका उपयोग कर लाभ उठाये नौकरी में प्रमोशन का विषय होघर का विवाद सुलझाना होपत्नी या पति को अनुकूल बनाना होघर का कोई सदस्य गलत मार्ग पर जा रहा हो, और उसे सही मार्ग पर लाना होव्यवसाय का कोई महत्वपूर्ण सहमती पत्र चाहिएनौकरी के लिए साक्षात्कार में सफलता पाना होपड़ोसियों को अपने अनुकूल बनाना होसमाज और खेल में प्रतिष्ठा अर्जित करनी हो सभी काम मे उपयोग करे

कृष्ण पक्ष के किसी भी शुक्रवार से इस साधना को प्रारंभ करके अगले शुक्रवार तक करना है. समय रात्रि का मध्यकाल होगा. लाल वस्त्र,और लाल आसन प्रयोग करना है .पश्चिम दिशा की और मुखकरके मंत्र जप होगा.सिद्धासन या वज्रासन का प्रयोग करना ह

जमीन को पानी से धोकर साफ़ कर लीजिए और उस पर एक त्रिकोण जो अधोमुखी होगा कुमकुम से उसका निर्माण कर लीजिए. यन्त्र नीचे दीगयी आकृति के समान ही बनेगा. मध्य में एक मिटटी काऐसा पात्र स्थापित होगा, जिसमे अग्नि प्रज्वलित हो रही होगी. यन्त्र निर्माण के बाद सद्गुरुदेव तथा भगवान गणपति का पूजन होगा. और ठीक इसी प्रकार 1 शुद्ध भोज पत्र पर अपना नाम सहित यन्त्र बने गा और भोज पत्र का यन्त्र उसी अग्नि के नीचे रखा जाये गा

पूजन के पश्चात हाथ में जल लेकर माया शक्ति की प्राप्ति का संकल्प तथा विनियोग करना है और निम्न ध्यान मंत्र का ७ बार उच्चारण करना है

विनियोग 

अस्य माया मन्त्रस्य परब्रम्ह ऋषिः त्रिष्टुप छन्दः परशक्ति देवता पुष्कर बीजं माया कीलकं पूर्ण माया प्रयोग सिद्धयर्थे जपे विनियोगः

धयान लगाये

तापिच्छ-नीलां शर-चाप-हस्तां सर्वाधिकाम् श्याम-रथाधिरुढाम्Iनमामि रुद्रावसनेन लोकां सर्वान् सलोकामपि मोहयंतिम्II

ध्यान मंत्र के बाद देवी का पूजन कुमकुम से रंगे अक्षतों और लाल जवा पुष्पों से करना है,गूगल की धुप और तेल का दीपक प्रज्वलित करना है. नैवेद्य में खीर अर्पित कर दे . और त्रिकोण के प्रत्येक कोनों पर एक-एक धतूरे का फल स्थापित कर द

ह्रीं” बीज से २१ बार प्राणायाम करे ,और इसके बादगूगल,लोहबान मिलाकर मूल मन्त्र बोलते हुए यन्त्र के मध्य में स्थापित अग्निपात्र में सूकरी मुद्रा से आहुति दे. इस प्रकार २१६ मन्त्र का उच्चारण करते हुए आहुति दें.  और जप के बाद ध्यान मंत्र का पुनः ७ बार उच्चारण करें. खीर को कही एकांत स्थान पर पत्तल में डाल कर रख दें.

मन्त्र   

ओं ह्रीं भू: ह्रीं भुवः ह्रीं स्वः ह्रीं शिवान्घ्री युग्मे विनिविष्टचित्तं सर्वेषां दृष्टयो हृदयस्य बालम् रिपुणाम् निद्रां विवशम् करोति महामाये मां परिरक्ष नित्यं ह्रीं स्वः ह्रीं भुवः ह्रीं भू: ओं स्वाहाII

यही क्रम आपको आगामी शुक्रवार तक नित्य करना है. और भोज पत्र पर बना हुआ यन्त्र किसी चांदी की त्रिमुख वाली मे पहन ले  
इसके बाद जब भी आपको किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए जाना हो , मन्त्र को ७ बार बोलकर हाथो पर फूक मार ले और हाथ को पूरे शरीर पर फेर ले. आप खुद ही प्रभाव देखकर आश्चर्यचकित हो जायेगे. 

अगर आप इस ताबीज को सिद्ध ना कर पाये तो हमसे अपने नाम द्वारा सिद्ध करा के पहन सकते ह  जरूर लाभ उठाये आप लोग  किसी भी  छेत्र मे

तांत्रिक सुदीप
बह्मम कुमारी आश्रम
लखनऊ

शनिवार, 3 सितंबर 2016

श्री गायत्री मन्त्र इतिहास

राम राम भाइयो मे ता0 सुदीप आज आपको गायत्री मन्त्र के इतिहास और इसके गुड़ के बारे मे बताओ गाक्योंकि कई लोग अपने रोज की पूजा मे इसका जाप करते ह मगर इसका मतलब नही जानते होंगे तो सुरु किया जाये 
गायत्री मन्त्र चारों वेदों में आया है। इसके ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं। वैसे तो यह मंत्र विश्वामित्र के इस सूक्त के १८ मंत्रों मे केवल एक है, किंतु अर्थ की दृष्टि से इसकी महिमा का अनुभव आरंभ में ही ऋषियों ने कर लिया था, और संपूर्ण ऋग्वेद के १० सहस्रमंत्रों मे इस मंत्र के अर्थ की गंभीर व्यंजना सबसे अधिक की गई। इस मंत्र में २४ अक्षर हैं। उनमें आठ आठ अक्षरों के तीन चरण हैं। किंतु ब्राह्मण ग्रंथों में और कालांतरके समस्त साहित्य में इन अक्षरों से पहले तीनव्याहृतियाँ और उनसे पूर्व प्रणव या ओंकार को जोड़कर मंत्र का पूरा स्वरूप इस प्रकार स्थिर हुआ:

(१) ॐ
(२) भूर्भव: स्व:
(३) तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

मंत्र के इस रूप को मनु ने सप्रणवा, सव्याहृतिका गायत्री कहा है और जप में इसी काविधान किया है।गायत्री तत्व क्या है और क्यों इस मंत्र की इतनी महिमा है, इस प्रश्न का समाधान आवश्यक है। आर्ष मान्यता के अनुसार गायत्री एक ओर विराट् विश्व और दूसरी ओर मानव जीवन, एक ओर देवतत्व और दूसरी ओर भूततत्त्व, एक ओर मन और दूसरी ओर प्राण, एक ओर ज्ञान और दूसरी ओर कर्मके पारस्परिक संबंधों की पूरी व्याख्या कर देती है। इस मंत्र के देवता सविता हैं, सविता सूर्य की संज्ञा है, सूर्य के नाना रूप हैं, उनमें सविता वह रूप है जो समस्त देवों को प्रेरित करता है।

जाग्रत् में सवितारूपी मन ही मानव की महती शक्ति है। जैसे सविता देव है वैसे मन भी देव है (देवं मन: ऋग्वेद, १,१६४,१८)। मन ही प्राण का प्रेरक है। मन और प्राण के इस संबंध की व्याख्या गायत्री मंत्र को इष्ट है। सविता मन प्राणों के रूप में सब कर्मों का अधिष्ठाता है, यह सत्य प्रत्यक्षसिद्ध है। इसे ही गायत्री के तीसरे चरण में कहा गया है। ब्राह्मण ग्रंथों की व्याख्या है-कर्माणि धिय:, अर्थातृ जिसे हम धी या बुद्धि तत्त्व कहते हैं वह केवल मन के द्वारा होनेवाले विचार या कल्पना सविता नहीं किंतु उन विचारों का कर्मरूप में मूर्त होना है। यही उसकी चरितार्थता है।

किंतु मन की इस कर्मक्षमशक्ति के लिए मन का सशक्त या बलिष्ठ होना आवश्यक है। उस मन का जो तेज कर्म की प्रेरण के लिए आवश्यक है वही वरेण्य भर्ग है। मन की शक्तियों का तो पारवारनहीं है। उनमें से जितना अंश मनुष्य अपने लिएसक्षम बना पाता है, वहीं उसके लिए उस तेज का वरणीय अंश है। अतएव सविता के भर्ग की प्रार्थना में विशेष ध्वनि यह भी है कि सविताया मन का जो दिव्य अंश है वह पार्थिव या भूतोंके धरातल पर अवतीर्ण होकर पार्थिव शरीर में प्रकाशित हो। इस गायत्री मंत्र में अन्य किसी प्रकार की कामना नहीं पाई जाती। यहाँ एकमात्र अभिलाषा यही है कि मानव को ईश्वर की ओर से मन के रूप में जो दिव्य शक्ति प्राप्त हुई है उसके द्वारा वह उसी सविता का ज्ञान करे और कर्मों के द्वारा उसे इस जीवन में सार्थक करे।

गायत्री के पूर्व में जो तीन व्याहृतियाँ हैं, वे भी सहेतुक हैं। भू पृथ्वीलोक, ऋग्वेद, अग्नि, पार्थिव जगत् और जाग्रत् अवस्था का सूचक है। भुव: अंतरिक्षलोक, यजुर्वेद, वायु देवता, प्राणात्मक जगत् और स्वप्नावस्था का सूचक है। स्व: द्युलोक, सामवेद, आदित्यदेवता, मनोमय जगत् और सुषुप्ति अवस्था का सूचक है। इस त्रिक के अन्य अनेक प्रतीक ब्राह्मण, उपनिषद् और पुराणों में कहे गए हैं, किंतु यदि त्रिक के विस्तार में व्याप्त निखिल विश्व को वाक् के अक्षरों के संक्षिप्त संकेत में समझना चाहें तो उसके लिए ही यह ॐ संक्षिप्त संकेत गायत्री के आरंभ में रखा गया है। अ, उ, म इन तीनों मात्राओं से ॐ का स्वरूप बना है। अ अग्नि, उ वायु और म आदित्य का प्रतीक है। यह विश्व प्रजापति की वाक् है।वाक् का अनंत विस्तार है किंतु यदि उसका एक संक्षिप्त नमूना लेकर सारे विश्व का स्वरूप बताना चाहें तो अ, उ, म या ॐ कहने से उस त्रिक का परिचय प्राप्त होगा जिसका स्फुट प्रतीक त्रिपदा गायत्री

महामन्त्र

वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है जिसकी महत्ता ॐ के लगभग बराबर मानी जाती है। यह यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में सवित्र देव की उपासना है इसलिए इसेसावित्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है।'गायत्री' एक छन्द भी है जो ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध छंदों में एक है। इन सात छंदों के नाम हैं-गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, विराट, त्रिष्टुप् और जगती। गायत्री छन्द मेंआठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में त्रिष्टुप् को छोड़कर सबसे अधिक संख्या गायत्री छंदों की है। गायत्री के तीन पद होते हैं (त्रिपदा वै गायत्री)। अतएव जब छंद या वाक् के रूप में सृष्टि के प्रतीक की कल्पना की जाने लगी तब इस विश्व को त्रिपदा गायत्री का स्वरूप माना गया। जब गायत्री के रूप में जीवन की प्रतीकात्मक व्याख्या होने लगी तब गायत्री छंद की बढ़ती हुई महिता के अनुरूप विशेष मंत्र की रचना हुई,

जो इस प्रकार है:तत् सवितुर्वरेण्यंभर्गोदेवस्य धीमहि। धियोयो न: प्रचोदयात् (ऋग्वेद ४,६२,१०)

हिन्दी में भावार्थ :उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।

हमारे यहा कठिन से कठिन समस्या का सामाधान होता ह संपर्क कर सकते ह
ग्रहक्लेश, पति-पत्नि अनबन, सौतन दुश्मन छुटकारा, घर बैठे समाधान। फोन करे, पति पत्नी का रिश्ता, अदालत ने मामले, प्रेम विवाह, । फोन करे नि: संतान के रूप में समस्या: शारीरिक समस्या:= परिवार में समस्या विवाह में रुकावट,क्यों ऋण होना, ऊपरी,वशीकरण,काला जादू,

राम राम
ता0 सुदीप
ब्हमकुमारी आश्रम
लखनऊ

बुधवार, 31 अगस्त 2016

क्यों होते ह माला मे 108 मनके वैदिक द्वारा

राम राम भाइयो मे सुदीप कुमार  आज आप को  बताओ गा
क्यों होते हैं माला में 108 दाने …अंक शास्त्र के अनुसार मूलांक अर्थात 1 से लेकर 9 तक के अंक नवग्रहों के प्रतीक हैं। इसी प्रकार दर्शन शास्त्र ने भी अंकों के संदर्भ में व्याख्या की है। कहते हैं कि शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद से शून्य पर बोलने को कहा गया था। शून्य (0) प्रतीक है निर्गुण निराकार ब्रrा का और 1 अंक उस ईश्वर का जो दिखाई तो त्रिदेवों के रूप में देता है लेकिन वास्तव…… में वह एक ही है। नाम-रूप का भेद कार्य-भेद से है, 8 अंक में पूरी प्रकृति समाहित हैं। यथा-भूमिरापोनलोवायु: रवं मनोबुद्धि रेव च। अहंकार इतीयं से भिन्नाप्रकृतिरष्टधा।। अर्थात पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार यह मेरी 8 प्रकार की प्रकृति है। 108 की संख्या के पीछे यह रहस्य है कि इसके द्वारा जीव सांसारिक वस्तुओं की प्राçप्त, ईश्वर के दर्शन और ब्र्रrा तत्व की अनुभूति-जो भी चाहे, कर …सकता है। हमारी सांसों की संख्या के आधार पर 108 दानों की माला स्वीकृत की गई है। 24 घंटों में एक व्यक्ति 21600 बार सांस लेताहै। यदि 12 घंटे दिनचर्या में निकल जाते हैं तो शेष 12 घंटे देव-आराधाना में लिए बचते हैं। अर्थात 10800 सांसों का उपयोग अपने इष्टदेव के स्मरण के लिए करना चाहिए। लेकिन इतना समय देना हर किसी के लिए संभव नहीं होता। इसलिए इस संख्या में से अंतिम दो शून्य हटाकर शेष 108 सांस में ही प्रभु स्मरण की मान्यता प्रदान की गई है। एक अन्य मान्यता के अनुसार,एक वर्ष में सूर्य 216000 (दो लाख सोलह हजार) कलाएं बदलता है। सूर्य हर छहमहीने में उत्तरायण और दक्षिणायण रहता है। इस प्रकार छह महीने में सूर्य की कुल कलाएं 108000 (एक लाख आठ हजार) होती हैं। अंतिम तीन शून्य हटाने पर 108 संख्या मिलती है, इसलिए माला जप में 108 दाने सूर्य की एक-एक कलाओं के प्रतीक हैं। तीसरी मान्यता के अनुसार,ज्योतिष शास्त्र इन्हें 12 राशियों और 9 ग्रहों से जोडता है। 12 राशियोंऔर 9 ग्रहों का गुणनफल 108 आता है अर्थात 108 अंक संपूर्ण जगत की गति का प्रतिनिधित्व करता है। चौथी मान्यता भारतीय ऋषियों द्वारा 27 नक्षत्रों की खोज पर आधारित है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं, अत: इनके गुणनफल की संख्या 108 आती है जो परम पवित्र मानी जाती है। संतों तथा महान पुरूषों के नाम के पूर्व 108 अंक का प्रयोग यह भी संकेत देता है कि वे प्रकृति, ईश्वर एवं ब्रहा के संबंध में परोक्ष और अपरोक्ष ज्ञान वाले हैं। लेकिन अब इसका प्रयोग रूढ हो जाने से सम्मान के अर्थमें किया जा रहा है।

राम राम
सुदीप कुमार
ब्ह्मम कुमारी आश्रम

मंगलवार, 30 अगस्त 2016

हनुमान जी की पूजा पद्धति

मंगलवार को हनुमान जी की पूजा का विशेष दिन माना जाता है। इस दिन इनकी विशेष पूजा से साधक का हर मनोरथ सिद्ध होता है। अगर भगवान हनुमान को दीपदान किया जाए, तो साधक की हर इच्छा तत्काल पूर्ण होनेकी बात कही जाती है। इसके लिए पंचधान्य गेहूं, तिल, उड़द, मूंग और चावल को समान भाग में लें और सोमवार के दिन इन्हें नदी के शुद्ध जल में भिगो दें।अब इसे मंगलवार को किसी कुंवारी कन्या से इन्हें पिसवा लें। पिंडीतैयार हो जाने पर तीन, पांच, सात, नौ, ग्यारह और इक्कीस में से किसी एक संख्या में दीपक तैयार कर लें। उसमें लाल रंग के सूत की बत्ती डालें और गाय का शुद्ध घी या शुद्ध सरसों का तेल आवश्यकतानुसार दीपक में डाल दें। अब सायं संधिकाल में दीपक प्रज्जवलित कर गुगूल की धूनी दें। सुगंधित धूप अर्पित करें। सिंदूर मिश्रित चावल व लालपुष्प लेकर प्रत्येक मंत्र के साथ दीप के समीप अर्पित करें।

ॐ सुग्रीवाय नम:। ॐ अंगदाय नम:। ॐ सुषेणाय नम:। ॐ नलाय नम:। ॐ नीलाय नम:। ॐ जाम्वंताय नम:। ॐ प्रहस्ताय नम:। ॐ सुवेषाय नम:। ॐ अंजना पुत्राय नम:। ॐ रुद्रमूर्तय नम:। ॐ वायुसूताय नम:। ॐ जानकी जीवनाय नम:। ॐ रामदूताय नम:। ॐ ब्रह्मास्र निवारणाय नम:।
(या  मन्त्र   चालीसा  या  बजरंग बांड )
करना भी बहुत लाभ दायक है 

इसके बाद नैवेद्य के रूप में बेसन के लड्डू अथवा गुड़ और चना अर्पित करें और ॐ हं हनुमताय नम: मंत्र का एक माला जप करें। अगर आप स्फटिक शिवलिंग के समीप, शालिग्राम के समीप हनुमान जी के निमित्त दीपदान करें, तो आपकी कई समस्याएं समाप्त होने के साथ ही, लक्ष्मी की प्राप्ति भी होती है।

विघ्न तथा महान संकटों का नाश करने के लिए गणेश जी के निकट हनुमान जी का दीपदान किया जा सकता है। इसी प्रकार अगर भयंकर विष तथा व्याधि का भय हो, तो हनुमान विग्रह के समीप दीपदान किया जा सकता है। इसी प्रकार व्याधिनाश तथा दुष्ट ग्रहों की दृष्टि से रक्षा केलिए चौराहे पर दीपदान किया जा सकता है। किसी भी तरह के कानूनी मामलों से मुक्ति और संपूर्ण कार्यों की सिद्धि के लिए पीपल या वट वृक्ष की जड़ में दीपदान करना शुभ माना गया है।

राम राम 
ता0 सुदीप कुमार
ब्हम् कुमारी आश्रम
लखनऊ

रविवार, 7 अगस्त 2016

बन्धन किसे कहते ह

राम राम भाइयो मे सुदीप आज आपको बताओ गा  बंधन के बारे कई लोग को इसकी संपूर्ण जानकारी नही होती इस लेख को धयान पूर्वक पढे और समझे बन्धन क्या ह

बंधन अर्थात् बांधना। जिस प्रकार रस्सी से बांध देने से व्यक्ति असहाय हो कर कुछ कर नहीं पाता, उसी प्रकार किसी व्यक्ति, घर, परिवार, व्यापार आदि को तंत्र-मंत्र आदि द्वारा अदृश्य रूप से बांध दिया जाए तो उसकी प्रगति रुक जाती है और घर परिवार की सुख शांति बाधित हो जाती है। ये बंधन क्या हैं और इनसे मुक्ति कैसे पाई जा सकती है जानने केलिए पढ़िए यह आलेख…
मानव अति संवेदनशील प्राणी है। प्रकृति और भगवान हर कदम पर हमारी मदद करते हैं। आवश्यकता हमें सजग रहने की है। हम अपनी दिनचर्या में अपने आस-पास होने वाली घटनाओं पर नजर रखें और मनन करें। यहां बंधन के कुछ उदाहरण प्रस्तुत करता हो

किसी के घर में ८-१० माह का छोटा बच्चा है। वह अपनी सहज बाल हरकतों से सारे परिवार का मन मोह रहा है। वह खुश है, किलकारियां मार रहा है। अचानक वह सुस्त या निढाल हो जाता है। उसकी हंसी बंद हो जाती है। वह बिना कारण के रोना शुरू कर देता है, दूध पीना छोड़ देता है। बस रोता और चिड़चिड़ाता ही रहता है। हमारे मन में अनायास ही प्रश्न आएगा कि ऐसा क्यों हुआ?
किसी व्यवसायी की फैक्ट्री या व्यापार बहुत अच्छा चल रहा है। लोग उसके व्यापार की तरक्की का उदाहरण देते हैं। अचानक उसके व्यापार में नित नई परेशानियां आने लगती हैं। मशीन और मजदूर की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जो फैक्ट्री कल तक फायदे में थी, अचानक घाटे की स्थिति में आ जाती है। व्यवसायी की फैक्ट्री उसे कमा कर देने के स्थान पर उसे खाने लग गई। हम सोचेंगे ही कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
किसी परिवार का सबसे जिम्मेदार और समझदार व्यक्ति, जो उस परिवार का तारणहार है, समस्त परिवार की धुरी उस व्यक्ति के आस-पास ही घूम रही है, अचानक बिना किसी कारण के उखड़ जाता है। बिना कारण के घर में अनावश्यक कलह करना शुरू कर देता है। कल तक की उसकी सारी समझदारी और जिम्मेदारी पता नहीं कहां चली जाती है। वह परिवार की चिंता बन जाता है। आखिर ऐसा क्यों हो गया?
कोई परिवार संपन्न है। बच्चे ऐश्वर्यवान, विद्यावान व सर्वगुण संपन्न हैं। उनकीसज्जनता का उदाहरण सारा समाज देता है। बच्चे शादी के योग्य हो गए हैं, फिर भी उनकी शादी में अनावश्यक रुकावटें आने लगती हैं। ऐसा क्यों होता है?
आपके पड़ोस के एक परिवार में पति-पत्नी में अथाह प्रेम है। दोनों एक दूसरे के लिए पूर्ण समर्पित हैं। आपस में एक दूसरे का सम्मान करते हैं। अचानक उनमें कटुता व तनाव उत्पन्न हो जाता है। जो पति-पत्नी कल तक एक दूसरे के लिए पूर्ण सम्मान रखते थे, आज उनमें झगड़ा हो गया है। स्थिति तलाक की आ गई है। आखिर ऐसा क्यों हुआ?
हमारे घर के पास हरा भरा फल-फूलों से लदा पेड़ है। पक्षी उसमें चहचहा रहे हैं। इस वृक्ष से हमें अच्छी छाया और हवा मिल रही है। अचानक वह पेड़ बिना किसी कारण के जड़ से ही सूख जाता है। निश्चय ही हमें भय की अनुभूति होगी और मन में यह प्रश्न उठेगा कि ऐसा क्यों हुआ?
हमें अक्सर बहुत से ऐसे प्रसंग मिल जाएंगे जो हमारी और हमारे आसपास की व्यवस्था को झकझोर रहे होंगे, जिनमें क्यों” की स्थिति उत्पन्न होगी। विज्ञान ने एक नियम प्रतिपादित किया है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। हमें निश्चय ही मनन करना होगा कि उपर्युक्त घटनाएं जो हमारे आसपास घटित हो रही हैं, वे किन क्रियाओं की प्रतिक्रियाएं हैं? हमें यह भी मानना होगा कि विज्ञान की एक निश्चित सीमा है। अगर हम परावैज्ञानिक आधार पर इन घटनाओं को विस्तृत रूप से देखें तो हम निश्चय ही यह सोचने पर विवश होंगे कि कहीं यह बंधन या स्तंभन की परिणति तो नहीं है ! यह आवश्यक नहीं है कि यह किसी तांत्रिक अभिचार के कारण हो रहा हो। यह स्थिति हमारी कमजोर ग्रह स्थितियों व गण के कारण भी उत्पन्न हो जाया करती है। हम भिन्न श्रेणियों के अंतर्गत इसका विश्लेषण कर सकते हैं। इनके अलग-अलग लक्षण हैं। इन लक्षणों और उनके निवारण का संक्षेप में वर्णन यहां प्रस्तुत है।
कार्यक्षेत्र का बंधन, स्तंभन या रूकावटें
दुकान/फैक्ट्री/कार्यस्थल की बाधाओं के लक्षण
किसी दुकान या फैक्ट्री के मालिक का दुकान या फैक्ट्री में मन नहीं लगना।
ग्राहकों की संख्या में कमी आना।
आए हुए ग्राहकों से मालिक का अनावश्यक तर्क-वितर्क-कुतर्क और कलह करना।
श्रमिकों व मशीनरी से संबंधित परेशानियां।
मालिक को दुकान में अनावश्यक शारीरिक व मानसिक भारीपन रहना।
दुकान या फैक्ट्री जाने की इच्छा न करना।
तालेबंदी की नौबत आना।
दुकान ही मालिक को खाने लगे और अंत में दुकान बेचने पर भी नहीं बिके।
कार्यालय बंधन के लक्षण
कार्यालय बराबर नहीं जाना।
साथियों से अनावश्यक तकरार।
कार्यालय में मन नहीं लगना।
कार्यालय और घर के रास्ते में शरीर में भारीपन व दर्द की शिकायत होना।
कार्यालय में बिना गलती के भी अपमानित होना।
घर-परिवार में बाधा के लक्षण
परिवार में अशांति और कलह।
बनते काम का ऐन वक्त पर बिगड़ना।
आर्थिक परेशानियां।
योग्य और होनहार बच्चों के रिश्तों में अनावश्यक अड़चन।
विषय विशेष पर परिवार के सदस्यों का एकमत न होकर अन्य मुद्दों पर कुतर्क करके आपस में कलह कर विषय से भटक जाना।
परिवार का कोई न कोई सदस्य शारीरिक दर्द, अवसाद, चिड़चिड़ेपन एवं निराशा का शिकार रहता हो।
घर के मुख्य द्वार पर अनावश्यक गंदगी रहना।
इष्ट की अगरबत्तियां बीच में ही बुझ जाना।
भरपूर घी, तेल, बत्ती रहने के बाद भी इष्ट का दीपक बुझना या खंडित होना।
पूजा या खाने के समय घर में कलह की स्थिति बनना।
व्यक्ति विशेष का बंधन
हर कार्य में विफलता।
हर कदम पर अपमान।
दिल और दिमाग का काम नहीं करना।
घर में रहे तो बाहर की और बाहर रहे तो घर की सोचना।
शरीर में दर्द होना और दर्द खत्म होने के बाद गला सूखना।

इसके अगले लेख मे  इसके उपाय तथा ग्रहो द्वारा अपने आप से बन्धन के बारे बताया जाये गा तब तब राम राम

सुदीप कुमार
ब्ह्मम कुमारी आश्रम

गुरुवार, 4 अगस्त 2016

शत्रु नासक पर्माडित प्रोयग

जब हिरण्यकश्यप को भगवान् नृसिंह ने अपनी गोद में रखकर अपने खर-तर नखों से उसके उदर को सर्वथा विदीर्ण कर चीर दिया और प्रह्लाद का दुःख दूर हो गया । तदनन्तर श्री भगवान् नृसिंह का वह क्रोध शान्त न हुआ, तब भगवान् विष्णु के आग्रह पर भगवान् रुद्र ने श्री शरभेश्वर (पक्षिराज, पक्षीन्द्र, पंखेश्वर) का रुप धारण कर, अपनी लौह के समान कठिन त्रोटी (चोंच) से, नृसिंह देव के ब्रह्म-रन्ध्र को विदीर्ण कर दिया, जिससे वे पुनः शान्त हो गए ।
संक्षिप्त अनुष्ठान विधि-
स्वस्तिवाचन करके गुरु एवं गणपति पूजन करें। संकल्प करके श्री भैरव की पूजा करें- दक्षिण दिशा में मुख रखें। काले कम्बल का आसन प्रयुक्त करें। दो दीप रखें-एक घृत का देवता के दाँये और दूसरा सरसों के तेल का अथवा करंज का देवता के बाँये रखें। आकाश भैरव शरभ का चित्र मिल जाए तो सर्वोत्तम है, अन्यथा एक रक्तवर्ण वस्त्र पर गेहूँ की ढेरी लगाएँ, उस पर जल से पूर्ण ताम्र कलश रखें। उसपर श्रीफल रखकर शरभ भैरव का आवाहन, ध्यान एवं षोडशोपचार पूजन करे। नैवेद्य लगाएं और जप पाठ शुरु करें।
इसके दो प्रकार के पाठ हैं-
१॰ स्तोत्र पाठ, १०८ बार मन्त्र जप एवं पुनः स्तोत्र पाठ।
२॰ १०८ बार मन्त्र जप, ७ बार स्तोत्र पाठ और पुनः १०८ बार मन्त्र जप। फल-श्रुति के अनुसार आदित्यवार से मंगलवार तक रात्रि में दस बार पढ़ने से शत्रु-बाधा दूर हो जाती है।
हवन, तर्पण, मार्जन एवं ब्रह्मभोज दशांश क्रम से करें, संभव न हो तो इसके स्थान पर पाठ एवं जप अधिक संख्या में करें।
निग्रह दारुण सप्तक स्तोत्र या शरभेश्वर स्तोत्र
विनियोग- ॐ अस्य दारुण-सप्तक-महामन्त्रस्य श्री सदाशिव ऋषिः वृहती छन्सः श्री शरभो देवता ममाभीष्ट-सिद्धये जपे विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यास- श्रीसदाशिव ऋषये नमः शिरसि। वृहती छन्दसे नमः मुखे। श्रीशरभ-देवतायै नमः हृदि। ममाभिष्ट-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ।
।। मूल स्तोत्र ।।
कापोद्रेकाऽति वीर्यं निखिल-परिकरं तार-हार-प्रदीप्तम्।
ज्वाला-मालाग्निदश्च स्मर-तनु-सकलं त्वामहं शालु-वेशं।।
याचे त्वत्पाद्-पद्म-प्रणिहित-मनसं द्वेष्टि मां यः क्रियाभिः।
तस्य प्राणावसानं कुरु शिव ! नियतं शूल-भिन्नस्य तूर्णम्।।१
शम्भो ! त्वद्धस्त-कुन्त-क्षत-रिपु-हृदयान्निस्स्त्रवल्लोहितौघम्।
पीत्वा पीत्वाऽति-दर्पं दिशि-दिशि सततं त्वद्-गणाश्चण्ड-मुख्याः।।
गर्ज्जन्ति क्षिप्र-वेगा निखिल-भय-हराः भीकराः खेल-लोलाः।
सन्त्रस्त-ब्रह्म-देवा शरभ खग-पते ! त्राहि नः शालु-वेश ! ।।२
सर्वाद्यं सर्व-निष्ठं सकल-भय-हरं नानुरुप्यं शरण्यम्।
याचेऽहं त्वाममोघं परिकर-सहितं द्वेष्टि योऽत्र स्थितं माम्।।
श्रीशम्भो ! त्वत्-कराब्ज-स्थित-मुशल-हतास्तस्य वक्ष-स्थलस्थ-
प्राणाः प्रेतेश-दूत-ग्रहण-परिभवाऽऽक्रोश-पूर्वं प्रयान्तु।।३
द्विष्मः क्षोण्यां वयं हि तव पद-कमल-ध्यान-निर्धूत-पापाः।
कृत्याकृत्यैर्वियुक्ताः विहग-कुल-पते ! खेलया बद्ध-मूर्ते ! ।।
तूर्णं त्वद्धस्त-पद्म-प्रधृत-परशुना खण्ड-खण्डी-कृताङ्गः।
स द्वेष्टी यातु याम्यं पुरमति-कलुषं काल-पाशाग्र-बद्धः।।४
भीम ! श्रीशालुवेश ! प्रणत-भय-हर ! प्राण-हृद् दुर्मदानाम्।
याचे-पञ्चास्य-गर्व-प्रशमन-विहित-स्वेच्छयाऽऽबद्ध-मूर्ते ! ।।
त्वामेवाशु त्वदंघ्य्रष्टक-नख-विलसद्-ग्रीव-जिह्वोदरस्य।
प्राणोत्क्राम-प्रयास-प्रकटित-हृदयस्यायुरल्पायतेऽस्य।।५
श्रीशूलं ते कराग्र-स्थित-मुशल-गदाऽऽवर्त-वाताभिघाता-
पाताऽऽघातारि-यूथ-त्रिदश-रिपु-गणोद्भूत-रक्तच्छटार्द्रम्।।
सन्दृष्ट्वाऽऽयोधने ज्यां निखिल-सुर-गणाश्चाशु नन्दन्तु नाना-
भूता-वेताल-पुङ्गाः क्षतजमरि-गणस्याशु मत्तः पिवन्तु।।६
त्वद्दोर्दण्डाग्र-शुण्डा-घटित-विनमयच्चण्ड-कोदण्ड-युक्तै-
र्वाणैर्दिव्यैरनेकैश्शिथिलित-वपुषः क्षीण-कोलाहलस्य।।
तस्य प्राणावसानं परशिव ! भवतो हेति-राज-प्रभावै-
स्तूर्णं पश्यामियो मां परि-हसति सदा त्वादि-मध्यान्त-हेतो।।७
।। फल-श्रुति ।।
इति निशि प्रयतस्तु निरामिषो, यम-दिशं शिव-भावमनुस्मरन्।
प्रतिदिनं दशधाऽपि दिन-त्रयं, जपति यो ग्रह-दारुण-सप्तकम्।।८
इति गुह्यं महाबीजं परमं रिपुनाशनम्।
भानुवारं समारभ्य मंगलान्तं जपेत् सुधीः।।९
।। इत्याकाश भैरव कल्पे प्रत्यक्ष सिद्धिप्रदे नरसिंह कृता शरभस्तुति ।।
श्रीशरभेश्वर मन्त्र विधान
विनियोग- ॐ अस्य श्रीशरभेश्वर मन्त्रेश्वर कालाग्नि-रुद्रः ऋषिः जगती छंदः श्री शरभो देवता ॐ खँ बीजं, स्वाहा शक्तिः फट् कीलक मम कार्य सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यास- ॐ कालाग्नि-रुद्रः ऋषये नमः शिरसि। ॐ अति जगती छन्दसे नमः मुखे। श्री शरभो देवतायै नमः हृदये। ॐ खं बीजाय नमः गुह्ये। स्वाहा शक्तये नमः पादयो। विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।

कर-न्यास- ॐ खें खां अं कं खं गं घं ङं आं अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ खं फट् इं चं छं जं झं ञं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ प्राणग्रहासि प्राणग्रहासि हुं फट् उं टं ठं डं ढं णं ऊं मध्यमाभ्यां नमः। ॐ सर्वशत्रु संहारणाय एं तं थं दं धं नं ऐं अनामिकाभ्यां नमः। ॐ शरभ-शालुवाय ओं पं फं बं भं मं औं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ पक्षि-राजाय हुं फट् स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादिन्यास- ॐ खें खां अं कं खं गं घं ङं आं हृदयाय नमः। ॐ खं फट् इं चं छं जं झं ञं शिरसे स्वाहा। ॐ प्राणग्रहासि प्राणग्रहासि हुं फट् उं टं ठं डं ढं णं ऊं शिखायै वषट्। ॐ सर्वशत्रु संहारणाय एं तं थं दं धं नं ऐं कवचाय हुम्। ॐ शरभ-शालुवाय ओं पं फं बं भं मं औं नेत्र त्रयाय वोषट्। ॐ पक्षि-राजाय हुं फट् स्वाहा अस्त्राय फट्।
ध्यानम्-
चन्द्रार्काग्निस्त्रि-दृष्टिः कुलिश-वर-नखश्चञ्चलोत्युग्र-जिह्वः।
कालि-दुर्गा च पक्षौ हृदय जठरगो भैरवो वाडवाग्निः।।
ऊरुस्थौ व्याधि-मृत्यू शरभ-वर-खगश्चण्ड-वाताति-योगः।
संहर्त्ता सर्व-शत्रून् स जयति शरभः शालुवः पक्षिराजः।।१
मृगस्त्वर्ध-शरीरेण पक्षाभ्यां चञ्चुना द्विजः,
अधो-वक्त्रश्चतुष्पाद ऊर्ध्व-वक्त्रश्चतुर्भुजः।
कालाग्नि-दहनोपेतो नील-जीमूत-सन्निभः,
अरिस्तद्-देशनादेव विनष्ट-बल-विक्रमः।।२
सटा-छटोग्र-रुपाय पक्ष-विक्षिप्त-भूभृते,
अष्ट-पादाय रुद्राय नमः शरभ-मूर्तये।।३
श्री शरभेश्वर मन्त्र
१॰ “ॐ खें खां खं फट् प्राणग्रहासि प्राणग्रहासि हुं फट् सर्वशत्रु संहारणाय शरभशालुवाय पक्षिराजाय हुं फट् स्वाहा।” (द्विचत्वारिंशदक्षर-शरभ तन्त्र)
२॰ “ॐ नमोऽष्टपादाय सहस्त्रबाहवे द्विशिरसे त्रिनेत्राय द्विपक्षायाग्नि वर्णाय मृगविह्ङ्गरुपाय वीर शरभेश्वराय ॐ।”
इनमें से किसी एक मन्त्र का जप करें।
पुरश्चरण-
अनुष्ठान से पुर्व पुरश्चरण भी विहित है, इसकी दो विधियां है-
१॰ यह नौ दिन में हो सकता है। इसमें पहले दिन पूर्वाङ्ग तथा अन्तिम एक दिन उत्तराङ्ग का हो। बीच में सात दिन ७-७ बार पाठ करें।
२॰ यह आठ दिन में भी हो सकता है। स्तोत्र के आठ दिन तक आठ-आठ पाठ नित्य रात्रि में करे। आठ दिन में मन्त्र के जप ११ हजार कर लें।
शरभेश्वर के अन्य मन्त्र
१॰ एक-चत्वारिंशदक्षरः
“ॐ खं खां खं फट् शत्रून् ग्रससि ग्रससि हुं फट् सर्वास्त्र-संहारणाय शरभाय पक्षि-राजाय हुं फट् स्वाहा नमः।” (मेरु-तन्त्र)
ऋषि वासुदेव, छन्द जगती, देवता कालाग्नि-रुद्र शरभ, बीज ‘खं’, शक्ति ‘स्वाहा’। मन्त्र के ४, ९, १०, ७, ५, ६ अक्षरों से षडङ्ग-न्यास। समस्त मन्त्र से दिग्-बन्धन कर ध्यान करें-
विद्युज्जिह्वं वज्र-नखं वडवाग्न्युदरं तथा,
व्याधि-मृत्यु-रिपुघ्नं चण्ड-वाताति-वेगिनम्।
हृद्-भैरव-स्वरुपं च वैरि-वृन्द-निषूदनं,
मृगेन्द्र-त्वक्छरीरेऽस्य पक्षाभ्यां चञ्चुना रवः।
अधो-वक्त्रश्चतुष्पाद ऊर्ध्व-दृष्टिश्चतुर्भुजः,
कालान्त-दहन-प्रख्यो नील-जीमूत-नीःस्वन्।
अरिर्यद्-दर्शनादेव विनष्ट-बल-विक्रमः,
सटा-क्षिप्त-गृहर्क्षाय पक्ष-विक्षिप्त-भूभृते।
अष्ट-पादाय रुद्राय नमः शरभ-मूर्तये।।
पुरश्चरण में एक हजार जप कर पायस से प्रतिदिन छः मास तक दशांश होम करे।
२॰ गायत्रीः
“ॐ पक्षि-शाल्वाय विद्महे वज्र-तुण्डाय धीमहि तन्नः शरभः प्रचोदयात् ॐ” (शरभ-तन्त्र)
“ॐ पक्षि-राजाय विद्महे शरभेश्वराय धीमहि तन्नो शरभः प्रचोदयात्” (शरभ-पटल)
३॰ अष्टोत्तर-शताक्षर माला-मन्त्र
“ॐ नमो भगवते शरभाय शाल्वाय सर्व-भूतोच्चाटनाय ग्रह-राक्षस-निवारणाय ज्वाला-माला-स्वरुपाय दक्ष-निष्काशनाय साक्षाद् काल-रुद्र-स्वरुपाष्ट-मूर्तये कृशानु-रेतसे महा-क्रूर-भूतोच्चाटनाय अप्रति-शयनाय शत्रून् नाशय नाशय शत्रु-पशून् गृह्ण गृह्ण खाद खाद ॐ हुं फट् स्वाहा।” (मेरु-तन्त्र)
प्रतिदिन १०८ बात छः मास तक जपने से उक्त मन्त्र सिद्ध होता है। उसके बाद पात्र में पवित्र जल रखकर सात बार उसे अभिमन्त्रित करे। इसके पीने से एक सप्ताह में सब प्रकार के ज्वर शान्त होते हैं।

सुदीप कुमार
ब्ह्मम कुमारी आश्रम

रविवार, 31 जुलाई 2016

निम्बू वशीकरण विधि

राम राम भाइयो मे सुदीप आज आप को पेड़ के फल से वशीकरण करना बताओ गा

निम्बू वशीकरण प्रोयग

एक पुस्ट निम्बू लेकर उसमे सुध गोरोचन से उस पुरष या स्त्री का नाम लिखे जिसे अपने बस मे करना ह क्रिया सिर्फ 3 दिन होगी  मंगल  सनिवार रविवार। की रात्रि मे करना ये ह की पूर्व मुख हो कर बैठे  1 निम्बू ले कर उसपे गोरोचन से नाम लिख एक कागज पे रख के सुंगधित धूप दिप दे के

॥ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ स्वाहा॥

मात्र  1188 मन्त्रो से इसको अभिमन्त्रित करे  और उस स्त्री या पुरष के घर की किसी दीवार मे गाड दे  या उसके घर या छत पर भी फेक सकते इससे कुछ ही समय मे जिस घर मे निम्बू फेका ह नाम लिख कुछ समय मे वो खुद ही आपसे वशीभूत आके आपसे मिले गा

*  इस निम्बू को निम्बू के पेड़ की जड़ मे गाड़ने पर वो काम्युत हो कर आपसे मिले गा या मिले गी

* इस निम्बू को नारियल के पेड़ की जड़ मे दबाया जाये तो ये प्रेम मे प्लावित कर देता ह।

* मदिरा मे डालने पर भी कामुकभाव उतपन हो मिले गा

* निम्बू काटना या छेदना नही ह

* निम्बू पका हो मगर पिला नही

* जमहिरी निम्बू अधिक उत्तम ह

संपर्क कर सकते ह
सुदीप कुमार
ब्हम कुमारी आश्रम
लखनऊ

रविवार, 24 जुलाई 2016

सावन मे केसे पूरी करे अपनी मनोकामना

शिव लिंग की पूजा सभी योनियो की पूजा का फल प्रदान करती ह

सियार सिंगी

सियार सिंगी :-

प्रिय दोस्तों मैं आप का दोस्त  सुदीप आज विषय लेकर आ रहा हूं सियार सिंगी ,
सियार को गीदड़ भी कहते हैं यह जंगलों में या फिर चिड़ियाघर में पाए जाते हैं लगभग सभी लोग इस से परिचित होंग
तंत्र शास्त्र में अनेक रहस्य छुपे हुए हैं इनमें से एक रहस्य है सियार सिंगी
आप लोग सोच रहे होंगे कि जब सियार या गीदड़ के सिंह नहीं होते तो फिर किस सियार सिंगी की बात हो रही है दोस्तों यह आश्चर्य का विषय है ,

सियार के सींग नहीं होते हुए भी उससे सियार सिंगी प्राप्त की जाती है Siyar जब ऊपर की ओर मुंह करके चिल्लाता है तो उसकी नाक के ऊपर एक हड्डी सी उभर आती है ,
यही सियार सिंगी होती ह!
ै सियार सिंगी को आप उस वक्त देख सकते हैं जब सियार ऊपर की ओर मुंह है उठा कर चिल्ला रहा हो अथवा जब गीदड़ या सियार बूढ़ा हो जाता है और जब उसे मृत्यु तुले कष्ट होता है तो चिल्लाता है और यह बाहर निकल जाती है

दोस्तों किसी की हत्या कर के प्राप्त की हुई सियार सिंगी घर और kul और परिवार का नाश करती है लेकिन कुछ मुर्ख और अज्ञानी तांत्रिक समझते हैं सियार की हत्या कर प्राप्त की हुई सियार सिंगी करामाती होती है
लेकिन यह सत्य नहीं है

मैं उस सियार सिंगी की बात कर रहा हां जो  सियार   अपने आप मर जाता है 
सियार सिंगी का आकार किसी चिड़िया के कठोर सिर की ्    तरह ं होता है जिसके आगे एक नाखून की तरह हड्डी की चोंच निकली हुई होती है और समय के साथ इसके ऊपर बाल उग आते हैं
और यही असली सियार सिंघी की पहचान होती है कि उसके बाद अपने आप बढ़ते है

बाजार मेंबाजार में बहुत से बालों वाली नकली सियार सिंगी मिल जाती है लेकिन वह नकली होती है
जिस व्यक्ति के पास या ं जिस घर में सियार सिंगी रहती है वहां सदा उन्नति और उसके नाम की विजयपथ vijayptaka  सदा लहराती रहती है
कोई संकट उसे छू नहीं सकता कोई मानहानि उसकी कर नहीं सकता
कारोबार में सदैव वर्दी होती रहती ह
शत्रु निष्तेज हो जाते हैं
सम्मोहन शक्ति  बढ़ जाती है
आर्थिक स्थिति मजबूत हो जाती
गांव और समाज में नगर में उसके नाम ka यस फैल जाता है

सियार सिंगी को सिद्ध करने की एक खास विधि होती है जो केवल गुरु शिष्य परंपरा में प्रदान की जाती है
अब बात करते हैं सियारsinghi के प्रयोगों की

  सियार सिंगी की सिद्धि करने की विधि गुप्त होने के कारण यहां बता तो नहीं सकता लेकिन आप हमसे सिद्ध की हुई सियार सिंगी प्राप्त कर सकते हैं

सिद्ध की हुई सियार सिंगी को एक चांदी या तांबे की dibbi में रख कर के कुछ चावल के दाने डालें कुछ उड़द के दाने भी डाले
छोटी इलायची की डालें और प्रतिदिन धूप दीप अपने इष्ट देवता गुरुदेव और गणेश की पूजा के बाद करते रहे  
1. सियार सिंघी वाला सिंदूर जिसकी भी मांग में भर दिया जाएगा वह जिंदगी भर साथ नहीं छोड़ेगा या जिस पुरुष के सिर पर यह सिंदूर डाल दिया जाएगा वह
आजीवन स्त्री के वश में रहेगा
2. सियार सिंगी वाले चावल यदि किसी भूत प्रेत जिन्नात या क्रोधित व्यक्ति को मारे जाएंगे तो उसका भूत प्रेत जिन्नात और उसका क्रोध सदा के लिए समाप्त हो जाएगा     
3. सियार सिंघी वाले उड़द के दाने जिस व्यक्ति को मारे जाएंगे या जिस दरवाजे पर फेंके जाएंगे वह व्यक्ति और घर कभी भी आबाद नहीं रह सकेगा 
4. सियार सिंघी वाली छोटी इलाइची जिसे खिला दोगे उस से मनचाहा काम करवा सकते हो
सियार सिंगी के और भी बहुत से सफल प्रयोग मैंने किए हैं जो कि गुप्त हैं उनको यहां बताना उचित नहीं समझता अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें आपका दोस्त :-
सुदीप कुमार
ब्ह्मम कुमारी आश्रम
लखनऊ

सरीर एक यन्त्र

राम राम भाइयो मै सुदीप कुमार आप को आज एक विषय बता रहा हो जिससे लोग जादा परिचित नही ह मगर ये बात जानना सभी के लिए बहुत जरुरी ह जिसके के बगैर तन्त्र मन्त्र योग साधना सब बेकार ह बहुत लोग उर्ग साधना उठा लेते ह किन्तु सफल नही होती बल्कि उनको दंड भी झेलना पड़ता ह किसी ना किसी रूप मै बात करते ह विषय पे तो कुछ समय पहले किसीने रूद्र की साधना मांगी थी मगर में सोच रहा था की भाई को पता भी होगा की रूद्र अपने सरीर में कहा स्थित ह और कैसे इस ऊर्जा को खोला जाये और ईन तरंगो को कैसे पहचान में लाये साथ ही इन तरंगो को कैसे समझे आज में आपको इसी विषय में बताओ गा मगर 10 मिनट में मेरी पोस्ट चोरी हो जाए गी फेसबुक व्हाट्सऐप पे लग जाए गी किन्तु ये उन साधक केपास पाउच जाए गी जो अपने आप को निर्बल समझ कुछ नही करते ह दुसरो के बरोसे रहा करते ह सय्याद ये पोस्ट पढ़ कुछ कर सके बात करते ह रूद्र की तो शास्त्र मै रूद्र का वर्णन महादेव को कहा गया ह क्योंकि उनके अंदर विभिन्न प्रकार की शक्तिया ह जो कुछ सोम्य ह और कुछ रूद्र ह जबरूद्र शक्ति जागृत होती ह तो प्रलय आता ह जिसके पड़माडीत खुद कामदेवह मगर ये जितने ही रूद्र ह उतने ही सोम्य भी ह इसिलिय कामदेव को कृष अवतार भी कहा गया ह मगर ये हमारा विषय नही ह बात करते ह रूद्र तरंग की तो पृथ्वी पे रहने वाले जिव जन्तु या पशु पक्षी या मनुष्य या हवाजल ये सभी इस पृत्वी से कुछ ना कुछ लेते ह और इनको कुछ ना कुछ देते ह सही मायने में कहा जाये की जीवन धन और ऋण रूप में हो जाता ह बात ले लेते ह सूर्य और पृथ्वी की तो सूर्य से जो ऊर्जा निकलती ह वो ऋण ऊर्जा तरंग कहलाती ह क्योंकि वो हमे कुछ ना कुछ दे रही ह यानी पृथ्वी हमारी धन हुई क्योंकि ये उन तरंग को अवसेषित कर रही ह अब बातकरे सरीर के तन्त्र की तो मेंन 8 कुण्डलिया बताई गयी ह इस तन्त्र में जिसका जागरण मेदिनेशन वाले करवाते ह और इन 8 कुंडलियो से 8 प्रकार की ऊर्जा निकलती ह मगर पहचान कैसे करे तो हमारे पुराने ऋषि मुनि ने पृथ्वी को समझ कर एक यन्त्र बनाया जो हमे बता ता ह की सरीर में कोण सी ऊर्जा कहा बस्ती ह उन्होंने इसका नाम कछुआ दिया क्योंकिपृत्वी ना ही गोल ह ना अंडाकार इस लिए इसको चित्र द्वारा समझते ह जबहम ध्यान या योग करते ह तो ये ऊर्जा हमारे सरीर से निकल हमारे मस्तिक में पाउच जाती ह जिससे अपने सरीर की तरंग द्वारा 1 शिव लिंग का निर्माण करा ही देती ह यहाँ के चित्र में आपको उन तरंग के नाम कहता हो जो सोम्य भी ह और रूद्र भी अब बात करते ह रूद्र की तो चित्र में 3 नंबर पे रूद्र ह जो हम सोचते ह समझते ह कार्य करते ह वो इन्ही तरंग द्वारा होता ह और 0 से 3 तक इसका मेन संचालक ही रूद्र बिंदु पेहोता ह या ये कहे की सरीर की 1 प्रकार की गाडी का हैंडिल यही ह जो सोचने समझने का कार्य करवाता ह और यही तरंग ऊर्जा उर्ग रूप में पउच कर रूद्र रूपी शक्तियो को अवसेषित कर लेती ह यानी कहे तो अघोर वाममार्गी रूद्र योगी इसको ही आज्ञा तरंग कहते ह क्योंकि ये पुरे सरीर का संचालक ह अब बात करते ह 5 वे तरंग की तो विष्णु रूपी यानी पालनहार जब हमारी आँख नाख जब किसी वास्तु को देखती या सुनती ह या किसी प्रकार का भाव महसूस करती ह ये विष्णु तरंग उसको अवसेसित कर कोमल रूप भाव वाले चौथे चक्र पर फेकती ह इस बिंदु पे क्रिया होने लगती ह और सरस्वती तरंग उतपन होने लगती ह जिससे उस को कोमल भाव की अनुभूति होने लगती ह और उसी तरंग को 1 नम्बर यानी दिमाग के चक्र पर भेजती ह तो ये तरंग उस भाव का विश्लेषण करा ती ह और जब ये तरंग रूद्रपे पहुचती ह तो उस फूल की या उस गंध की पहचान रूद्र तरंग कर देती ह ये सारी क्रिया छन भर में हो जाती ह जिसका हम लोग पता नही करते 1 बातसे कहते ह जेसे गिटार पर उंगलिया चलती या जेसे कम्प्यूटर का मोनिटर1 के बाद 1 बिंदु को सक्रीय करता उसी प्रकार आज्ञाचक्र की तरंग तरंगो को 1 सेकेण्ड के 100 हिस्से में दर्जन ऊर्जा बिंदु को स्पर्श करके क्रिया के लिए ऊर्जा उतपन करती ह इस प्रकार वो कोई भी जिव हो अपनी संपूर्ण क्रिया करता ह जब हम सोते ह तो ये आज्ञाचक्र हीअपनी गति रोक लेता ह इस आज्ञाचक् के बिगड़ने पे ही मनुष्य पागल हो जाता ह इसीलिए जब कोई साधक मन्त्र तन्त्र की पहली सीधी चड़ता ह तो उसे त्राटक करवाया जाता ह जिससे वो अपनी ऊर्जा को पहचान ले साथ ही अपने सरीर को साधता ह जिससे उसे सिद्धि आदि मिलती ह जब कोई रूद्र साधना आदि करता ह तो पृथ्वी पे घूमने वाली शक्ति ही इसका भोग करती हयानी ऋण या धन सायद अब आप लोग परिचित हो गए होंगे रूद्र से। राम राम
सुदीप कुमार
ब्ह्मम कुमारी आश्रम लखनऊ

मंगलवार, 19 जुलाई 2016

पित्र दोष हमारे लिए लाभवनति ह या हानिकारक

‎राम राम भाइयो मे सुदीप कुमार
जन्म_पत्रिका_और_पितृ_दोष‬१-- क्या है पितृ दोष ?२-- कौन हैं पितृ गण ?पितर या पितृ गण कौन हैं ?पितृ गण हमारे पूर्वज हैंजिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है | मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है,पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है|आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँ हमारे पूर्वज मिलते हैं |अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया |इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की तरफ बढती है |वहाँ से आगे ,यदि और अधिक पुण्य हैं, तो आत्मा सूर्य लोक को बेध कर स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसीहोती है ,जो परमात्मा में समाहित होती है |जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता | मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं|पितृ दोष क्या होता है?----------------------------हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और नाही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं,जिसे "पितृ-दोष" कहा जाता है |पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है .ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है |पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं,आपके आचरण से,किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से ,अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी होसकता है |इसके अलावा मानसिक-----------------------------अवसाद,व्यापार में नुक्सान ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना,वैवाहिकजीवन में समस्याएं.,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त मेंकहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है ,पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभफल नहीं मिल पाते,कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए ,उसका शुभ फल नहीं मिल पाता|पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है:१.अधोगति .वाले पितरों के कारण२. .उर्ध्वगति वाले पितरों के कारणअधोगति वाले पितरों के दोषोंका मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण,परिजनों की अतृप्त इच्छाएं ,जायदादके प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोगहोने पर,विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय .परिवार के किसीप्रियजन को अकारणकष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं ,परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति सेनकारात्मक फल प्रदान करते हैं|उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते ,परन्तु उनका किसी भीरूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का निर्वहन नहींकरने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं |इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति कीभौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है ,फिर चाहे कितने भीप्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ,उनका कोई भी कार्यये पितृदोष सफल नहीं होने देता |पितृ दोष निवारण के लिए सबसे पहले ये जानना ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है ?----------------------------------------------------++-++जन्म पत्रिका और पितृ दोष--------------------------------------जन्म पत्रिका में लग्न ,पंचम ,अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है |पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य,चन्द्रमा ,गुरु ,शनि ,और राहू -केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है |इनमें से भी गुरु ,शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृ दोष में महत्वपूर्ण होती है |इनमें सूर्य से पिता या पितामह , चन्द्रमा से माता या मातामह ,मंगल से भ्राता या भगिनी और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है|अधिकाँश लोगों की जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से क्योंकि गुरु ,शनिऔर राहु से पीड़ित होने पर ही पितृ दोष उत्पन्न होता है ,इसलिए विभिन्न उपायों को करने के साथ साथ व्यक्ति यदि पंचमुखी ,सातमुखी और आठ मुखी रुद्राक्ष भी धारण कर ले , तो पितृ दोष का निवारण शीघ्र हो जाता है |पितृ दोष निवारण के लिए इन रुद्राक्षों को धारण करने केअतिरिक्त इन ग्रहों के अन्य उपाय जैसे मंत्र जप और स्तोत्रों का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है |विभिन्न ऋण और पितृ दोष-----------------------------------:हमारे ऊपर मुख्य रूप से ५ ऋण होते हैं जिनका कर्म न करने(ऋण न चुकाने पर ) हमें निश्चित रूप से श्राप मिलता है ,ये ऋण हैं : मातृ ऋण,पितृ ऋण ,मनुष्य ऋण ,देव ऋण और ऋषि ऋण |मातृ ऋण : -------माता एवं माता पक्ष के सभी लोग जिनमेंमा,मामी ,नाना ,नानी ,मौसा,मौसी और इनके तीन पीढ़ीके पूर्वज होते हैं ,क्योंकि माँ का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा माना गया है अतः यदि माता के प्रति कोई गलत शब्द बोलता है ,अथवा माता के पक्ष को कोई कष्ट देता रहता है,तो इसके फलस्वरूप उसको नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं |इतना ही नहीं ,इसके बाद भी कलह और कष्टों का दौर भी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है |पितृ ऋण: :----------पिता पक्ष के लोगों जैसे बाबा ,ताऊ ,चाचा, दादा-दादी और इसके पूर्व की तीन पीढ़ी का श्राप हमारे जीवन को प्रभावित करता है |पिता हमें आकाश की तरह छत्रछाया देता है,हमारा जिंदगी भर पालन -पोषण करता है,और अंतिम समय तक हमारे सारे दुखों को खुद झेलता रहता है |पर आज के केइस भौतिक युग में पिता का सम्मान क्या नयी पीढ़ी कर रही है ?पितृ -भक्ति करना मनुष्य का धर्म है ,इस धर्म का पालन न करने पर उनका श्राप नयी पीढ़ी को झेलना ही पड़ता है ,इसमें घर में आर्थिक अभाव,दरिद्रता ,संतानहीनता ,संतान को विबिन्न प्रकार के कष्ट आना या संतान अपंग रह जाने से जीवन भर कष्ट की प्राप्ति आदि |देव ऋण :----माता -पिता प्रथम देवता हैं,जिसके कारण भगवान गणेश महान बने |इसके बाद हमारे इष्ट भगवान शंकर जी ,दुर्गा माँ ,भगवान विष्णु आदि आते हैं ,जिनको हमारा कुल मानता आ रहा है ,हमारे पूर्वज भी भीअपने अपने कुल देवताओं को मानते थे , लेकिन नयी पीढ़ी ने बिलकुल छोड़ दिया है|इसी कारण भगवान /कुलदेवी /कुलदेवता उन्हें नाना प्रकार के कष्ट /श्राप देकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं|ऋषि ऋण : ----जिस ऋषि के गोत्र में पैदा हुए ,वंश वृद्धि की ,उन ऋषियों का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने में नयी पीढ़ी कतराती है ,उनके ऋषि तर्पण आदिनहीं करती है | इस कारण उनके घरों में कोई मांगलिक कार्यनहीं होते हैं,इसलिए उनका श्राप पीडी दर पीढ़ी प्राप्त होता रहता है |मनुष्य ऋण : -----माता -पिता के अतिरिक्त जिन अन्य मनुष्यों ने हमें प्यार दिया,दुलार दिया ,हमारा ख्याल रखा ,समय समय पर मदद की |गायआदि पशुओं का दूध पिया |जिन अनेक मनुष्यों ,पशुओं ,पक्षियों ने हमारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मदद की ,उनका ऋण भी हमारे ऊपर हो गया |लेकिन लोग आजकल गरीब ,बेबस ,लाचार लोगों की धन संपत्ति हरण करके अपने को ज्यादा गौरवान्वित महसूस करते हैं|इसी कारण देखने में आया है कि ऐसे लोगों का पूरा परिवार जीवन भर नहीं बस पाता है,वंश हीनता,संतानों का गलत संगति में पड़ जाना,परिवार के सदस्यों का आपस में सामंजस्य न बन पाना ,परिवार कि सदस्यों का किसी असाध्य रोग से ग्रस्त रहना इत्यादि दोष उस परिवार में उत्पन्न हो जाते हैं |ऐसे परिवार को पितृ दोष युक्त या शापित परिवार कहा जाता है|रामायण में श्रवण कुमार के माता -पिता के श्राप के कारण दशरथ के परिवार को हमेशा कष्ट झेलना पड़ा,ये जग -ज़ाहिर है |इसलिए परिवार कि सर्वोन्नती के पितृ दोषों का निवारण करना बहुत आवश्यक है|पितृ-दोष कि शांति के उपाय : ----------------------------------------सामान्य उपायों में षोडश पिंड दान ,सर्प पूजा ,ब्राह्मण को गौ -दान,कन्या-दान,कुआं,बावड़ी ,तालाब आदि बनवाना ,मंदिर प्रांगण में पीपल,बड़(बरगद) आदि देव वृक्ष लगवाना एवं विष्णु मन्त्रों का जाप आदि करना ,प्रेत श्राप को दूर करने के लिए श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना चाहिए |वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र ,स्तोत्र एवं सूक्तों का वर्णन है ,जिसके नित्यपठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों ना हो ,शांत हो जाती है |अगर नित्य पठन संभवना हो , तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या और आश्विन कृष्ण पक्षअमावस्या अर्थातपितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए |वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृ दोष है उस पितृ दोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छा होता है ,लेकिन कुछऐसे सरल सामान्य उपाय भी हैं,जिनको करने सेपितृदोष शांत हो जाता है ,ये उपाय निम्नलिखित हैं :----सामान्य उपाय :१ .ब्रह्म पुराण (२२०/१४३ )में पितृ गायत्री मंत्र दिया गया है ,इस मंत्र कि प्रतिदिन १ माला या अधिक जाप करने से पितृ दोष में अवश्य लाभ होता है|मंत्र : देवताभ्यः पित्रभ्यश्च महा योगिभ्य एव च| नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः || "२. मार्कंडेय पुराण (९४/३ -१३ )में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ प्रसन्न होकर स्तुतिकर्ता मनोकामना कि पूर्ती करते हैं -----------पुराणोक्त पितृ -स्तोत्र :अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि।।नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।प्रजापतं कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।योगेश्वरेभ्यश्चसदा नमस्यामि कृतांजलिः।।नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।तेभ्योऽखिलेभ्योयोगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।अर्थ:रूचि बोले - जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानीतथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करताहूँ।नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरोंको सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कारकरता हूँ।अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं,उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ।उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों।विशेष - मार्कण्डेयपुराणमें महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति ‘पितृस्तोत्र’ कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है। श्राद्ध आदि के अवसरों पर ब्राह्मणों के भोजन के समय भी इसका पाठ करने-कराने का विधान है।३.भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में हीभगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है |मंत्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं:मंत्र : "ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात |४.अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा ,घी एवं एक रोटी गाय को खिलाने से पितृ दोष शांत होता है |५ . अपने माता -पिता ,बुजुर्गों का सम्मान,सभी स्त्री कुल का आदर /सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितरहमेशा प्रसन्न रहते हैं |६ . पितृ दोष जनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए "हरिवंश पुराण " का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें |७ . प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है |८.सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार "ॐ घृणि सूर्याय नमः " मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है |९. अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेदकपडा ,दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दानकरना चाहिए |१० .पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा अवश्य करें | अगर १०८ परिक्रमा लगाई जाएँ ,तो पितृ दोष अवश्य दूर होगा |विशिष्ट उपाय :१.किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें ,उसकी देख -भाल करें ,जैसे-जैसे वृक्ष फलता -फूलता जाएगा,पितृ -दोष दूर होता जाएगा,क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं |२. यदि आपने किसी का हक छीना है,या किसी मजबूर व्यक्ति की धन संपत्ति का हरण किया है,तो उसका हक या संपत्ति उसको अवश्य लौटा दें|३.पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक अर्थात एक माह तक किसी पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदयकाल में एक शुद्ध घी का दीपक लगाना चाहिए,ये क्रम टूटना नहीं चाहिए|एक माह बीतने पर जो अमावस्या आये उस दिन एक प्रयोग और करें :--इसके लिए किसी देसी गाय या दूध देने वाली गाय का थोडा सा गौ -मूत्र प्राप्त करें|उसे थोड़े एनी जल में मिलकर इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ों में डाल दें |इसके बाद पीपल वृक्ष के नीचे ५ अगरबत्ती ,एक नारियल और शुद्ध घी का दीपक लगाकर अपने पूर्वजों से श्रद्धा पूर्वक अपने कल्याण की कामना करें,और घर आकर उसी दिन दोपहर में कुछ गरीबों को भोजन करा दें |ऐसा करने पर पितृ दोष शांत हो जायेगा|४ .घर में कुआं हो या पीने का पानी रखने की जगह हो ,उस जगह की शुद्धताका विशेष ध्यान रखें,क्योंके ये पितृ स्थान माना जाता है | इसके अलावा पशुओं के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ लगवाने अथवा आवारा कुत्तों को जलेबी खिलाने से भी पितृ दोष शांत होता है|५ . अगर पितृ दोष के कारण अत्यधिक परेशानी हो,संतान हानि हो या संतान को कष्ट हो तो किसी शुभ समय अपने पितरों को प्रणाम कर उनसे प्रण होने की प्रार्थना करें और अपने dwara जाने-अनजाने में किये गए अपराध / उपेक्षा के लिए क्षमा याचना करें ,फिर घर में श्रीमदभागवद का यथा विधि पाठ कराएं,इस संकल्प ले साथ की इसका पूर्णफल पितरों को प्राप्त हो |ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंके उनकी मुक्ति का मार्ग आपने प्रशस्त किया होता है|६. पितृ दोष की शांति हेतु ये उपाय बहुत ही अनुभूत और अचूक फल देने वाला देखा गया है,वोह ये कि- किसी गरीब की कन्या के विवाह में गुप्त रूप से अथवा प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहयोग करना |(लेकिन ये सहयोग पूरे दिल से होना चाहिए ,केवल दिखावे या अपनी बढ़ाई कराने के लिए नहीं )|इस से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंकि इसके परिणाम स्वरुप मिलने वाले पुण्य फल से पितरों को बल और तेज़ मिलता है ,जिस से वह ऊर्ध्व लोकों की ओरगति करते हुए पुण्य लोकों को प्राप्त होतेहैं.|७. अगर किसी विशेष कामना को लेकर किसी परिजन की आत्मा पितृ दोष उत्पन्न करती है तो तो ऐसी स्थिति में मोह को त्याग कर उसकी सदगति के लिए "गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र " का पाठ करना चाहिए.|८.पितृ दोष दूर करने का अत्यंत सरल उपाय : इसके लिए सम्बंधित व्यक्ति को अपने घर के वायव्य कोण (N -W )में नित्य सरसोंका तेल में बराबर मात्रा में अगर का तेल मिलाकर दीपक पूरे पितृ पक्ष में नित्यलगाना चाहिए+दिया पीतल का हो तो ज्यादा अच्छा है ,दीपक कम से कम १०मिनट नित्य जलना आवश्यक है लाभ प्राप्ति के लिए |इन उपायों के अतिरिक्त वर्ष की प्रत्येक अमावस्या को दोपहर के समय गूगल की धूनी पूरे घर में सब जगह घुमाएं ,शाम को आंध्र होने के बाद पितरों के निमित्त शुद्ध भोजन बनाकर एक दोने में साड़ी सामग्री रख कर किसी बबूल के वृक्ष अथवा पीपल या बड़ किजद में रख कर आ जाएँ,पीछे मुड़कर न देखें.|नित्य प्रति घर में देसी कपूर जाया करें|ये कुछ ऐसे उपाय हैं,जो सरल भी हैं और प्रभावी भी,और हर कोई सरलता से इन्हें कर पितृ दोषों से मुक्ति पा सकता है|लेकिन किसी भी प्रयोग की सफलता आपकी पितरों के प्रति श्रद्धा के ऊपर निर्भर करती है|आप सदा खुश रहे,सुख समृद्धि में वृद्धि हो, यही कामना करते हैं ।

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

गुलर या उदुम्बर का बांदा







राम राम भाइयो मे  सुदीप कुमार आपके समक्ष आज गुप्त विषय के बारे मे बताओ गा वनस्पति जिस प्रकार हमारा सरीर हवा को अवसेसित करता ह उसी प्रकार पेड़ो पे उगने वाली वनस्पतियां आपकी तरंग को अवसेसित करती ह और आज मे आपको ऐसे ही त्रीव असर या वार करने के बारे मे बताओ गा जो चीज काफी दुर्लभ थी उसको हमारे आश्रम के मदारी जोगन ने दूर दूर से जगल से असली तथा अनेक अनेक अनेक प्रकार के बांदे से परिचित कराया आम का बांदा शिरीष का बांदा गुलर बांदा बेर का बांदा आदि जब एक बांदे को सिद्ध कर जब इसका प्रोयग किया तो ये बिजली जेसी तेज गति से काम किया यानी बन्दूक से गोली निकलने मे जितना समय लगता ह उतना ही समय  इसके वार मे लगता ह क्योंकि इसके तरंग रुद्र ऊर्जा मे उठती ह जो किसी तलवार से कम नही बात करते ह विषय पर तो पहली बार आप लोग को बांदा की फोटो तथा उनके प्रोयग से परिचित कराता हो बात करते ह  गुलर के बांदे की तो ये तो अत्यंत दुर्लभ ह  मगर मे उन मदारी का आभारी रहो गा की इतनी दूर दूर से लाकर हमको उपलब्ध कराया गुलर का फूल जिस प्रकार किस्मत वाले को मिलता ह उसी प्रकार इसका बांदा भी बहुत किस्मत वाले को मिलता ह  वेसे तो इस बांदे के कई प्रोयग ह जैसे आदमी की वाच सिद्धि धन उपलब्ध होता ह और खासियत ये ह की इस बांदे को जिस चीज के ऊपर रख दो  वो चीज कभी खत्म नही होगी फलती फूलती रहे गी ये पर्मादित ह आज मे इस की गुप्त विद्या के बारे मे थोड़ा बताओ गा जिसको सिर्फ ज्ञान पूर्वक ले  गुलर का बांदा अगर पेड़ पे दिखे तो न्योते की विधि द्वारा घर लाये रोहिणी नक्षत्र मे जो की महीने मे 3 दिन पड़ती ह अगर कोई दे तो इसको सुभ दिन  इसे गाय के गोबर से लेप करके गोमूत्र  से फिर दूध से  फिर घी से  लिप पोत कर धूप दिप दिखा के पवत्री कर ले इसे किसी विष्णु देव की मूर्ति के पास डिबिया मे स्तापित करे  ये आपकी सभी आछि बुरी मनोकामना को करने के लिए तैयार हो चुका ह अब इस्पे रोज सुबह की पूजा मे विष्णु देव का ध्यान लगा कर
ओम नमः विष्णुयाय जगत ...............कुरु कुरु ह्रीं श्रीं स्वाहा (मन्त्र अधूरा)  या तो इस मन्त्र से अपनी अभिलाषा पूरी कीजिए वरना     वरना इसको 1100 मन्त्रो से अभिमन्त्रित कर इसका चुरन बना रख लीजिये जब किसी को अपने प्रति अनुकूल करना हो तुरन्त उसके सर पे या सरीर मे कही भी छुआ दे  वो तुरन्त आपके प्रति अनुकूल हो जाये गा
# इसका टुकड़ा हल्दी की गाठ के साथ या हल्दी के घोल मे 24 घण्टे घोल कर रखे फिर  तिजोरी मे कोश मे  भंडार मे कोठे आनाज कही भी रखने से उस चीज की कमी नही होती  
# इसको रात भर ईख के रस के साथ रख उसका सेवन करने से  सभी रोग दूर होते ह  और सरीर मे उतेजना आती ह
#गुलर के बांदे को खेत मे गाड़ने से उसकी उपज कम नही होती
#निम फल चिरोटा कुटकी नागरमेथ के साथ उबाल पीने से चर्म रोग भी चला जाता ह
# गुड़ो से भरा ह सभी गुड़ बताना सम्भव नही ह  धीरे धीरे आपको सभी बांदो से परिचित कराता रहो गा  राम राम


सम्पर्क कर सकते ह किसी भी समस्या हेतु
तांत्रिक सुदीप
ब्ह्मम कुमारी आश्रम
लखनऊ