बुधवार, 31 अगस्त 2016

क्यों होते ह माला मे 108 मनके वैदिक द्वारा

राम राम भाइयो मे सुदीप कुमार  आज आप को  बताओ गा
क्यों होते हैं माला में 108 दाने …अंक शास्त्र के अनुसार मूलांक अर्थात 1 से लेकर 9 तक के अंक नवग्रहों के प्रतीक हैं। इसी प्रकार दर्शन शास्त्र ने भी अंकों के संदर्भ में व्याख्या की है। कहते हैं कि शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद से शून्य पर बोलने को कहा गया था। शून्य (0) प्रतीक है निर्गुण निराकार ब्रrा का और 1 अंक उस ईश्वर का जो दिखाई तो त्रिदेवों के रूप में देता है लेकिन वास्तव…… में वह एक ही है। नाम-रूप का भेद कार्य-भेद से है, 8 अंक में पूरी प्रकृति समाहित हैं। यथा-भूमिरापोनलोवायु: रवं मनोबुद्धि रेव च। अहंकार इतीयं से भिन्नाप्रकृतिरष्टधा।। अर्थात पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार यह मेरी 8 प्रकार की प्रकृति है। 108 की संख्या के पीछे यह रहस्य है कि इसके द्वारा जीव सांसारिक वस्तुओं की प्राçप्त, ईश्वर के दर्शन और ब्र्रrा तत्व की अनुभूति-जो भी चाहे, कर …सकता है। हमारी सांसों की संख्या के आधार पर 108 दानों की माला स्वीकृत की गई है। 24 घंटों में एक व्यक्ति 21600 बार सांस लेताहै। यदि 12 घंटे दिनचर्या में निकल जाते हैं तो शेष 12 घंटे देव-आराधाना में लिए बचते हैं। अर्थात 10800 सांसों का उपयोग अपने इष्टदेव के स्मरण के लिए करना चाहिए। लेकिन इतना समय देना हर किसी के लिए संभव नहीं होता। इसलिए इस संख्या में से अंतिम दो शून्य हटाकर शेष 108 सांस में ही प्रभु स्मरण की मान्यता प्रदान की गई है। एक अन्य मान्यता के अनुसार,एक वर्ष में सूर्य 216000 (दो लाख सोलह हजार) कलाएं बदलता है। सूर्य हर छहमहीने में उत्तरायण और दक्षिणायण रहता है। इस प्रकार छह महीने में सूर्य की कुल कलाएं 108000 (एक लाख आठ हजार) होती हैं। अंतिम तीन शून्य हटाने पर 108 संख्या मिलती है, इसलिए माला जप में 108 दाने सूर्य की एक-एक कलाओं के प्रतीक हैं। तीसरी मान्यता के अनुसार,ज्योतिष शास्त्र इन्हें 12 राशियों और 9 ग्रहों से जोडता है। 12 राशियोंऔर 9 ग्रहों का गुणनफल 108 आता है अर्थात 108 अंक संपूर्ण जगत की गति का प्रतिनिधित्व करता है। चौथी मान्यता भारतीय ऋषियों द्वारा 27 नक्षत्रों की खोज पर आधारित है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं, अत: इनके गुणनफल की संख्या 108 आती है जो परम पवित्र मानी जाती है। संतों तथा महान पुरूषों के नाम के पूर्व 108 अंक का प्रयोग यह भी संकेत देता है कि वे प्रकृति, ईश्वर एवं ब्रहा के संबंध में परोक्ष और अपरोक्ष ज्ञान वाले हैं। लेकिन अब इसका प्रयोग रूढ हो जाने से सम्मान के अर्थमें किया जा रहा है।

राम राम
सुदीप कुमार
ब्ह्मम कुमारी आश्रम

मंगलवार, 30 अगस्त 2016

हनुमान जी की पूजा पद्धति

मंगलवार को हनुमान जी की पूजा का विशेष दिन माना जाता है। इस दिन इनकी विशेष पूजा से साधक का हर मनोरथ सिद्ध होता है। अगर भगवान हनुमान को दीपदान किया जाए, तो साधक की हर इच्छा तत्काल पूर्ण होनेकी बात कही जाती है। इसके लिए पंचधान्य गेहूं, तिल, उड़द, मूंग और चावल को समान भाग में लें और सोमवार के दिन इन्हें नदी के शुद्ध जल में भिगो दें।अब इसे मंगलवार को किसी कुंवारी कन्या से इन्हें पिसवा लें। पिंडीतैयार हो जाने पर तीन, पांच, सात, नौ, ग्यारह और इक्कीस में से किसी एक संख्या में दीपक तैयार कर लें। उसमें लाल रंग के सूत की बत्ती डालें और गाय का शुद्ध घी या शुद्ध सरसों का तेल आवश्यकतानुसार दीपक में डाल दें। अब सायं संधिकाल में दीपक प्रज्जवलित कर गुगूल की धूनी दें। सुगंधित धूप अर्पित करें। सिंदूर मिश्रित चावल व लालपुष्प लेकर प्रत्येक मंत्र के साथ दीप के समीप अर्पित करें।

ॐ सुग्रीवाय नम:। ॐ अंगदाय नम:। ॐ सुषेणाय नम:। ॐ नलाय नम:। ॐ नीलाय नम:। ॐ जाम्वंताय नम:। ॐ प्रहस्ताय नम:। ॐ सुवेषाय नम:। ॐ अंजना पुत्राय नम:। ॐ रुद्रमूर्तय नम:। ॐ वायुसूताय नम:। ॐ जानकी जीवनाय नम:। ॐ रामदूताय नम:। ॐ ब्रह्मास्र निवारणाय नम:।
(या  मन्त्र   चालीसा  या  बजरंग बांड )
करना भी बहुत लाभ दायक है 

इसके बाद नैवेद्य के रूप में बेसन के लड्डू अथवा गुड़ और चना अर्पित करें और ॐ हं हनुमताय नम: मंत्र का एक माला जप करें। अगर आप स्फटिक शिवलिंग के समीप, शालिग्राम के समीप हनुमान जी के निमित्त दीपदान करें, तो आपकी कई समस्याएं समाप्त होने के साथ ही, लक्ष्मी की प्राप्ति भी होती है।

विघ्न तथा महान संकटों का नाश करने के लिए गणेश जी के निकट हनुमान जी का दीपदान किया जा सकता है। इसी प्रकार अगर भयंकर विष तथा व्याधि का भय हो, तो हनुमान विग्रह के समीप दीपदान किया जा सकता है। इसी प्रकार व्याधिनाश तथा दुष्ट ग्रहों की दृष्टि से रक्षा केलिए चौराहे पर दीपदान किया जा सकता है। किसी भी तरह के कानूनी मामलों से मुक्ति और संपूर्ण कार्यों की सिद्धि के लिए पीपल या वट वृक्ष की जड़ में दीपदान करना शुभ माना गया है।

राम राम 
ता0 सुदीप कुमार
ब्हम् कुमारी आश्रम
लखनऊ

रविवार, 7 अगस्त 2016

बन्धन किसे कहते ह

राम राम भाइयो मे सुदीप आज आपको बताओ गा  बंधन के बारे कई लोग को इसकी संपूर्ण जानकारी नही होती इस लेख को धयान पूर्वक पढे और समझे बन्धन क्या ह

बंधन अर्थात् बांधना। जिस प्रकार रस्सी से बांध देने से व्यक्ति असहाय हो कर कुछ कर नहीं पाता, उसी प्रकार किसी व्यक्ति, घर, परिवार, व्यापार आदि को तंत्र-मंत्र आदि द्वारा अदृश्य रूप से बांध दिया जाए तो उसकी प्रगति रुक जाती है और घर परिवार की सुख शांति बाधित हो जाती है। ये बंधन क्या हैं और इनसे मुक्ति कैसे पाई जा सकती है जानने केलिए पढ़िए यह आलेख…
मानव अति संवेदनशील प्राणी है। प्रकृति और भगवान हर कदम पर हमारी मदद करते हैं। आवश्यकता हमें सजग रहने की है। हम अपनी दिनचर्या में अपने आस-पास होने वाली घटनाओं पर नजर रखें और मनन करें। यहां बंधन के कुछ उदाहरण प्रस्तुत करता हो

किसी के घर में ८-१० माह का छोटा बच्चा है। वह अपनी सहज बाल हरकतों से सारे परिवार का मन मोह रहा है। वह खुश है, किलकारियां मार रहा है। अचानक वह सुस्त या निढाल हो जाता है। उसकी हंसी बंद हो जाती है। वह बिना कारण के रोना शुरू कर देता है, दूध पीना छोड़ देता है। बस रोता और चिड़चिड़ाता ही रहता है। हमारे मन में अनायास ही प्रश्न आएगा कि ऐसा क्यों हुआ?
किसी व्यवसायी की फैक्ट्री या व्यापार बहुत अच्छा चल रहा है। लोग उसके व्यापार की तरक्की का उदाहरण देते हैं। अचानक उसके व्यापार में नित नई परेशानियां आने लगती हैं। मशीन और मजदूर की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जो फैक्ट्री कल तक फायदे में थी, अचानक घाटे की स्थिति में आ जाती है। व्यवसायी की फैक्ट्री उसे कमा कर देने के स्थान पर उसे खाने लग गई। हम सोचेंगे ही कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
किसी परिवार का सबसे जिम्मेदार और समझदार व्यक्ति, जो उस परिवार का तारणहार है, समस्त परिवार की धुरी उस व्यक्ति के आस-पास ही घूम रही है, अचानक बिना किसी कारण के उखड़ जाता है। बिना कारण के घर में अनावश्यक कलह करना शुरू कर देता है। कल तक की उसकी सारी समझदारी और जिम्मेदारी पता नहीं कहां चली जाती है। वह परिवार की चिंता बन जाता है। आखिर ऐसा क्यों हो गया?
कोई परिवार संपन्न है। बच्चे ऐश्वर्यवान, विद्यावान व सर्वगुण संपन्न हैं। उनकीसज्जनता का उदाहरण सारा समाज देता है। बच्चे शादी के योग्य हो गए हैं, फिर भी उनकी शादी में अनावश्यक रुकावटें आने लगती हैं। ऐसा क्यों होता है?
आपके पड़ोस के एक परिवार में पति-पत्नी में अथाह प्रेम है। दोनों एक दूसरे के लिए पूर्ण समर्पित हैं। आपस में एक दूसरे का सम्मान करते हैं। अचानक उनमें कटुता व तनाव उत्पन्न हो जाता है। जो पति-पत्नी कल तक एक दूसरे के लिए पूर्ण सम्मान रखते थे, आज उनमें झगड़ा हो गया है। स्थिति तलाक की आ गई है। आखिर ऐसा क्यों हुआ?
हमारे घर के पास हरा भरा फल-फूलों से लदा पेड़ है। पक्षी उसमें चहचहा रहे हैं। इस वृक्ष से हमें अच्छी छाया और हवा मिल रही है। अचानक वह पेड़ बिना किसी कारण के जड़ से ही सूख जाता है। निश्चय ही हमें भय की अनुभूति होगी और मन में यह प्रश्न उठेगा कि ऐसा क्यों हुआ?
हमें अक्सर बहुत से ऐसे प्रसंग मिल जाएंगे जो हमारी और हमारे आसपास की व्यवस्था को झकझोर रहे होंगे, जिनमें क्यों” की स्थिति उत्पन्न होगी। विज्ञान ने एक नियम प्रतिपादित किया है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। हमें निश्चय ही मनन करना होगा कि उपर्युक्त घटनाएं जो हमारे आसपास घटित हो रही हैं, वे किन क्रियाओं की प्रतिक्रियाएं हैं? हमें यह भी मानना होगा कि विज्ञान की एक निश्चित सीमा है। अगर हम परावैज्ञानिक आधार पर इन घटनाओं को विस्तृत रूप से देखें तो हम निश्चय ही यह सोचने पर विवश होंगे कि कहीं यह बंधन या स्तंभन की परिणति तो नहीं है ! यह आवश्यक नहीं है कि यह किसी तांत्रिक अभिचार के कारण हो रहा हो। यह स्थिति हमारी कमजोर ग्रह स्थितियों व गण के कारण भी उत्पन्न हो जाया करती है। हम भिन्न श्रेणियों के अंतर्गत इसका विश्लेषण कर सकते हैं। इनके अलग-अलग लक्षण हैं। इन लक्षणों और उनके निवारण का संक्षेप में वर्णन यहां प्रस्तुत है।
कार्यक्षेत्र का बंधन, स्तंभन या रूकावटें
दुकान/फैक्ट्री/कार्यस्थल की बाधाओं के लक्षण
किसी दुकान या फैक्ट्री के मालिक का दुकान या फैक्ट्री में मन नहीं लगना।
ग्राहकों की संख्या में कमी आना।
आए हुए ग्राहकों से मालिक का अनावश्यक तर्क-वितर्क-कुतर्क और कलह करना।
श्रमिकों व मशीनरी से संबंधित परेशानियां।
मालिक को दुकान में अनावश्यक शारीरिक व मानसिक भारीपन रहना।
दुकान या फैक्ट्री जाने की इच्छा न करना।
तालेबंदी की नौबत आना।
दुकान ही मालिक को खाने लगे और अंत में दुकान बेचने पर भी नहीं बिके।
कार्यालय बंधन के लक्षण
कार्यालय बराबर नहीं जाना।
साथियों से अनावश्यक तकरार।
कार्यालय में मन नहीं लगना।
कार्यालय और घर के रास्ते में शरीर में भारीपन व दर्द की शिकायत होना।
कार्यालय में बिना गलती के भी अपमानित होना।
घर-परिवार में बाधा के लक्षण
परिवार में अशांति और कलह।
बनते काम का ऐन वक्त पर बिगड़ना।
आर्थिक परेशानियां।
योग्य और होनहार बच्चों के रिश्तों में अनावश्यक अड़चन।
विषय विशेष पर परिवार के सदस्यों का एकमत न होकर अन्य मुद्दों पर कुतर्क करके आपस में कलह कर विषय से भटक जाना।
परिवार का कोई न कोई सदस्य शारीरिक दर्द, अवसाद, चिड़चिड़ेपन एवं निराशा का शिकार रहता हो।
घर के मुख्य द्वार पर अनावश्यक गंदगी रहना।
इष्ट की अगरबत्तियां बीच में ही बुझ जाना।
भरपूर घी, तेल, बत्ती रहने के बाद भी इष्ट का दीपक बुझना या खंडित होना।
पूजा या खाने के समय घर में कलह की स्थिति बनना।
व्यक्ति विशेष का बंधन
हर कार्य में विफलता।
हर कदम पर अपमान।
दिल और दिमाग का काम नहीं करना।
घर में रहे तो बाहर की और बाहर रहे तो घर की सोचना।
शरीर में दर्द होना और दर्द खत्म होने के बाद गला सूखना।

इसके अगले लेख मे  इसके उपाय तथा ग्रहो द्वारा अपने आप से बन्धन के बारे बताया जाये गा तब तब राम राम

सुदीप कुमार
ब्ह्मम कुमारी आश्रम

गुरुवार, 4 अगस्त 2016

शत्रु नासक पर्माडित प्रोयग

जब हिरण्यकश्यप को भगवान् नृसिंह ने अपनी गोद में रखकर अपने खर-तर नखों से उसके उदर को सर्वथा विदीर्ण कर चीर दिया और प्रह्लाद का दुःख दूर हो गया । तदनन्तर श्री भगवान् नृसिंह का वह क्रोध शान्त न हुआ, तब भगवान् विष्णु के आग्रह पर भगवान् रुद्र ने श्री शरभेश्वर (पक्षिराज, पक्षीन्द्र, पंखेश्वर) का रुप धारण कर, अपनी लौह के समान कठिन त्रोटी (चोंच) से, नृसिंह देव के ब्रह्म-रन्ध्र को विदीर्ण कर दिया, जिससे वे पुनः शान्त हो गए ।
संक्षिप्त अनुष्ठान विधि-
स्वस्तिवाचन करके गुरु एवं गणपति पूजन करें। संकल्प करके श्री भैरव की पूजा करें- दक्षिण दिशा में मुख रखें। काले कम्बल का आसन प्रयुक्त करें। दो दीप रखें-एक घृत का देवता के दाँये और दूसरा सरसों के तेल का अथवा करंज का देवता के बाँये रखें। आकाश भैरव शरभ का चित्र मिल जाए तो सर्वोत्तम है, अन्यथा एक रक्तवर्ण वस्त्र पर गेहूँ की ढेरी लगाएँ, उस पर जल से पूर्ण ताम्र कलश रखें। उसपर श्रीफल रखकर शरभ भैरव का आवाहन, ध्यान एवं षोडशोपचार पूजन करे। नैवेद्य लगाएं और जप पाठ शुरु करें।
इसके दो प्रकार के पाठ हैं-
१॰ स्तोत्र पाठ, १०८ बार मन्त्र जप एवं पुनः स्तोत्र पाठ।
२॰ १०८ बार मन्त्र जप, ७ बार स्तोत्र पाठ और पुनः १०८ बार मन्त्र जप। फल-श्रुति के अनुसार आदित्यवार से मंगलवार तक रात्रि में दस बार पढ़ने से शत्रु-बाधा दूर हो जाती है।
हवन, तर्पण, मार्जन एवं ब्रह्मभोज दशांश क्रम से करें, संभव न हो तो इसके स्थान पर पाठ एवं जप अधिक संख्या में करें।
निग्रह दारुण सप्तक स्तोत्र या शरभेश्वर स्तोत्र
विनियोग- ॐ अस्य दारुण-सप्तक-महामन्त्रस्य श्री सदाशिव ऋषिः वृहती छन्सः श्री शरभो देवता ममाभीष्ट-सिद्धये जपे विनियोगः।
ऋष्यादि-न्यास- श्रीसदाशिव ऋषये नमः शिरसि। वृहती छन्दसे नमः मुखे। श्रीशरभ-देवतायै नमः हृदि। ममाभिष्ट-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः अञ्जलौ।
।। मूल स्तोत्र ।।
कापोद्रेकाऽति वीर्यं निखिल-परिकरं तार-हार-प्रदीप्तम्।
ज्वाला-मालाग्निदश्च स्मर-तनु-सकलं त्वामहं शालु-वेशं।।
याचे त्वत्पाद्-पद्म-प्रणिहित-मनसं द्वेष्टि मां यः क्रियाभिः।
तस्य प्राणावसानं कुरु शिव ! नियतं शूल-भिन्नस्य तूर्णम्।।१
शम्भो ! त्वद्धस्त-कुन्त-क्षत-रिपु-हृदयान्निस्स्त्रवल्लोहितौघम्।
पीत्वा पीत्वाऽति-दर्पं दिशि-दिशि सततं त्वद्-गणाश्चण्ड-मुख्याः।।
गर्ज्जन्ति क्षिप्र-वेगा निखिल-भय-हराः भीकराः खेल-लोलाः।
सन्त्रस्त-ब्रह्म-देवा शरभ खग-पते ! त्राहि नः शालु-वेश ! ।।२
सर्वाद्यं सर्व-निष्ठं सकल-भय-हरं नानुरुप्यं शरण्यम्।
याचेऽहं त्वाममोघं परिकर-सहितं द्वेष्टि योऽत्र स्थितं माम्।।
श्रीशम्भो ! त्वत्-कराब्ज-स्थित-मुशल-हतास्तस्य वक्ष-स्थलस्थ-
प्राणाः प्रेतेश-दूत-ग्रहण-परिभवाऽऽक्रोश-पूर्वं प्रयान्तु।।३
द्विष्मः क्षोण्यां वयं हि तव पद-कमल-ध्यान-निर्धूत-पापाः।
कृत्याकृत्यैर्वियुक्ताः विहग-कुल-पते ! खेलया बद्ध-मूर्ते ! ।।
तूर्णं त्वद्धस्त-पद्म-प्रधृत-परशुना खण्ड-खण्डी-कृताङ्गः।
स द्वेष्टी यातु याम्यं पुरमति-कलुषं काल-पाशाग्र-बद्धः।।४
भीम ! श्रीशालुवेश ! प्रणत-भय-हर ! प्राण-हृद् दुर्मदानाम्।
याचे-पञ्चास्य-गर्व-प्रशमन-विहित-स्वेच्छयाऽऽबद्ध-मूर्ते ! ।।
त्वामेवाशु त्वदंघ्य्रष्टक-नख-विलसद्-ग्रीव-जिह्वोदरस्य।
प्राणोत्क्राम-प्रयास-प्रकटित-हृदयस्यायुरल्पायतेऽस्य।।५
श्रीशूलं ते कराग्र-स्थित-मुशल-गदाऽऽवर्त-वाताभिघाता-
पाताऽऽघातारि-यूथ-त्रिदश-रिपु-गणोद्भूत-रक्तच्छटार्द्रम्।।
सन्दृष्ट्वाऽऽयोधने ज्यां निखिल-सुर-गणाश्चाशु नन्दन्तु नाना-
भूता-वेताल-पुङ्गाः क्षतजमरि-गणस्याशु मत्तः पिवन्तु।।६
त्वद्दोर्दण्डाग्र-शुण्डा-घटित-विनमयच्चण्ड-कोदण्ड-युक्तै-
र्वाणैर्दिव्यैरनेकैश्शिथिलित-वपुषः क्षीण-कोलाहलस्य।।
तस्य प्राणावसानं परशिव ! भवतो हेति-राज-प्रभावै-
स्तूर्णं पश्यामियो मां परि-हसति सदा त्वादि-मध्यान्त-हेतो।।७
।। फल-श्रुति ।।
इति निशि प्रयतस्तु निरामिषो, यम-दिशं शिव-भावमनुस्मरन्।
प्रतिदिनं दशधाऽपि दिन-त्रयं, जपति यो ग्रह-दारुण-सप्तकम्।।८
इति गुह्यं महाबीजं परमं रिपुनाशनम्।
भानुवारं समारभ्य मंगलान्तं जपेत् सुधीः।।९
।। इत्याकाश भैरव कल्पे प्रत्यक्ष सिद्धिप्रदे नरसिंह कृता शरभस्तुति ।।
श्रीशरभेश्वर मन्त्र विधान
विनियोग- ॐ अस्य श्रीशरभेश्वर मन्त्रेश्वर कालाग्नि-रुद्रः ऋषिः जगती छंदः श्री शरभो देवता ॐ खँ बीजं, स्वाहा शक्तिः फट् कीलक मम कार्य सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यास- ॐ कालाग्नि-रुद्रः ऋषये नमः शिरसि। ॐ अति जगती छन्दसे नमः मुखे। श्री शरभो देवतायै नमः हृदये। ॐ खं बीजाय नमः गुह्ये। स्वाहा शक्तये नमः पादयो। विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।

कर-न्यास- ॐ खें खां अं कं खं गं घं ङं आं अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ खं फट् इं चं छं जं झं ञं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ प्राणग्रहासि प्राणग्रहासि हुं फट् उं टं ठं डं ढं णं ऊं मध्यमाभ्यां नमः। ॐ सर्वशत्रु संहारणाय एं तं थं दं धं नं ऐं अनामिकाभ्यां नमः। ॐ शरभ-शालुवाय ओं पं फं बं भं मं औं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ पक्षि-राजाय हुं फट् स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादिन्यास- ॐ खें खां अं कं खं गं घं ङं आं हृदयाय नमः। ॐ खं फट् इं चं छं जं झं ञं शिरसे स्वाहा। ॐ प्राणग्रहासि प्राणग्रहासि हुं फट् उं टं ठं डं ढं णं ऊं शिखायै वषट्। ॐ सर्वशत्रु संहारणाय एं तं थं दं धं नं ऐं कवचाय हुम्। ॐ शरभ-शालुवाय ओं पं फं बं भं मं औं नेत्र त्रयाय वोषट्। ॐ पक्षि-राजाय हुं फट् स्वाहा अस्त्राय फट्।
ध्यानम्-
चन्द्रार्काग्निस्त्रि-दृष्टिः कुलिश-वर-नखश्चञ्चलोत्युग्र-जिह्वः।
कालि-दुर्गा च पक्षौ हृदय जठरगो भैरवो वाडवाग्निः।।
ऊरुस्थौ व्याधि-मृत्यू शरभ-वर-खगश्चण्ड-वाताति-योगः।
संहर्त्ता सर्व-शत्रून् स जयति शरभः शालुवः पक्षिराजः।।१
मृगस्त्वर्ध-शरीरेण पक्षाभ्यां चञ्चुना द्विजः,
अधो-वक्त्रश्चतुष्पाद ऊर्ध्व-वक्त्रश्चतुर्भुजः।
कालाग्नि-दहनोपेतो नील-जीमूत-सन्निभः,
अरिस्तद्-देशनादेव विनष्ट-बल-विक्रमः।।२
सटा-छटोग्र-रुपाय पक्ष-विक्षिप्त-भूभृते,
अष्ट-पादाय रुद्राय नमः शरभ-मूर्तये।।३
श्री शरभेश्वर मन्त्र
१॰ “ॐ खें खां खं फट् प्राणग्रहासि प्राणग्रहासि हुं फट् सर्वशत्रु संहारणाय शरभशालुवाय पक्षिराजाय हुं फट् स्वाहा।” (द्विचत्वारिंशदक्षर-शरभ तन्त्र)
२॰ “ॐ नमोऽष्टपादाय सहस्त्रबाहवे द्विशिरसे त्रिनेत्राय द्विपक्षायाग्नि वर्णाय मृगविह्ङ्गरुपाय वीर शरभेश्वराय ॐ।”
इनमें से किसी एक मन्त्र का जप करें।
पुरश्चरण-
अनुष्ठान से पुर्व पुरश्चरण भी विहित है, इसकी दो विधियां है-
१॰ यह नौ दिन में हो सकता है। इसमें पहले दिन पूर्वाङ्ग तथा अन्तिम एक दिन उत्तराङ्ग का हो। बीच में सात दिन ७-७ बार पाठ करें।
२॰ यह आठ दिन में भी हो सकता है। स्तोत्र के आठ दिन तक आठ-आठ पाठ नित्य रात्रि में करे। आठ दिन में मन्त्र के जप ११ हजार कर लें।
शरभेश्वर के अन्य मन्त्र
१॰ एक-चत्वारिंशदक्षरः
“ॐ खं खां खं फट् शत्रून् ग्रससि ग्रससि हुं फट् सर्वास्त्र-संहारणाय शरभाय पक्षि-राजाय हुं फट् स्वाहा नमः।” (मेरु-तन्त्र)
ऋषि वासुदेव, छन्द जगती, देवता कालाग्नि-रुद्र शरभ, बीज ‘खं’, शक्ति ‘स्वाहा’। मन्त्र के ४, ९, १०, ७, ५, ६ अक्षरों से षडङ्ग-न्यास। समस्त मन्त्र से दिग्-बन्धन कर ध्यान करें-
विद्युज्जिह्वं वज्र-नखं वडवाग्न्युदरं तथा,
व्याधि-मृत्यु-रिपुघ्नं चण्ड-वाताति-वेगिनम्।
हृद्-भैरव-स्वरुपं च वैरि-वृन्द-निषूदनं,
मृगेन्द्र-त्वक्छरीरेऽस्य पक्षाभ्यां चञ्चुना रवः।
अधो-वक्त्रश्चतुष्पाद ऊर्ध्व-दृष्टिश्चतुर्भुजः,
कालान्त-दहन-प्रख्यो नील-जीमूत-नीःस्वन्।
अरिर्यद्-दर्शनादेव विनष्ट-बल-विक्रमः,
सटा-क्षिप्त-गृहर्क्षाय पक्ष-विक्षिप्त-भूभृते।
अष्ट-पादाय रुद्राय नमः शरभ-मूर्तये।।
पुरश्चरण में एक हजार जप कर पायस से प्रतिदिन छः मास तक दशांश होम करे।
२॰ गायत्रीः
“ॐ पक्षि-शाल्वाय विद्महे वज्र-तुण्डाय धीमहि तन्नः शरभः प्रचोदयात् ॐ” (शरभ-तन्त्र)
“ॐ पक्षि-राजाय विद्महे शरभेश्वराय धीमहि तन्नो शरभः प्रचोदयात्” (शरभ-पटल)
३॰ अष्टोत्तर-शताक्षर माला-मन्त्र
“ॐ नमो भगवते शरभाय शाल्वाय सर्व-भूतोच्चाटनाय ग्रह-राक्षस-निवारणाय ज्वाला-माला-स्वरुपाय दक्ष-निष्काशनाय साक्षाद् काल-रुद्र-स्वरुपाष्ट-मूर्तये कृशानु-रेतसे महा-क्रूर-भूतोच्चाटनाय अप्रति-शयनाय शत्रून् नाशय नाशय शत्रु-पशून् गृह्ण गृह्ण खाद खाद ॐ हुं फट् स्वाहा।” (मेरु-तन्त्र)
प्रतिदिन १०८ बात छः मास तक जपने से उक्त मन्त्र सिद्ध होता है। उसके बाद पात्र में पवित्र जल रखकर सात बार उसे अभिमन्त्रित करे। इसके पीने से एक सप्ताह में सब प्रकार के ज्वर शान्त होते हैं।

सुदीप कुमार
ब्ह्मम कुमारी आश्रम